For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक शोकगीत (राजेश'मृदु')

माते ! मैं ही रहा अभागा

जो तुझको सुख दे न सका

पावन तेरी चरण-धूलि तक

अपने हित संजो न सका

भर नथुनों में अमर गंध तू

ठाकुर का मेहमान हुई

सित फूलों की उस घाटी में

अमर ब्रह्म मुदमान हुई

औ तेरा यह पारिजात मां

गलित गात, क्षत शाख हुआ

खेद-स्‍वेद के तीक्ष्‍ण धार से

गलता-जलता राख हुआ

करूणे ! तेरा वृथा पुत्र यह

तेरी रातें धो न सका

धन,बल,वैभव खूब सहेजा

पर तुझको संजो न सका

मेरा पाप वह मुझे परखता

विधि वाम क्‍या रोष करूं

दग्‍ध प्राण के इस विलाप पर

हा ! कैसे संतोष करूं

पतित छन्‍द मैं रहा नम्‍यते

भाव दूब तक बो न सका

सुखदे , तेरे मलयांचल में

छुपकर भी तो रो न सका

हो क्षुब्‍ध, देह यह छोड़ सकूं

इसका भी अधिकार कहां ?

देव करो अब वज्रपात ही

हुआ असह धिक्‍कार यहां

जो बोया कल, आज मिला मां

दंभ मेरा मैं खो न सका

कौन मेरा विश्‍वास करेगा

तेरा ही जब हो न सका

(पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 847

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राजेश 'मृदु' on October 29, 2013 at 3:24pm

आदरणीय राम शिरोमणि जी, जितेन्‍द्र 'गीत' जी, विजय निकोर जी, एवं अखिलेश जी, आप सबका हार्दिक आभार

Comment by ram shiromani pathak on October 29, 2013 at 11:20am

माते ! मैं ही रहा अभागा
जो तुझको सुख दे न सका
पावन तेरी चरण-धूलि तक
अपने हित संजो न सका///अनुपम

आदरणीय भाई राजेश जी ,भाव रुपी सरिता व् उत्कृष्ट रचना के लिए बहुत बहुत बधाई///सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 29, 2013 at 11:00am

माँ से बढ़कर कोई नही, माँ के चरण कमल में समर्पित, सुंदर रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय राजेश जी

Comment by vijay nikore on October 29, 2013 at 7:19am

कुछ भी हो माँ सदैव आशीर्वाद ही देंगी.....

माँ के पति इतनी सुन्दर रचना के लिए बधाई।

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 28, 2013 at 10:18pm

मां के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह न कर पाने का पश्चाताप लिये एक बहुत ही भावुक सी उत्कृष्ट रचना के लिये साधुवाद....वैसे गिरिराज सर की बात से मैं सहमत हूं कि भाई इस रचना का शीर्षक 'शोक गीत' न रखें.......एक और बात भाई......

// भर नथुनों में अमर गंध तू

ठाकुर का मेहमान हुई //

ये जरा देखियेगा..... मेरे हिसाब से "ठाकुर की मेहमान हुई" होना चाहिये.......!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 28, 2013 at 9:48pm

आदरणीय राजेश भाई , आंतरिक पछतावा से उपजी वेदाना का बहुत ही मार्मिक वर्णन किया है आपने !!! ऐसे सच्चे पछतावा के भाव के  बाद गलती स्वयं धुल जाती है !!!!! आपको इस गीत के लिये तहे दिल से बधाई !!!

विशेष ----- कृपा कर इस गीत का नाम शोक गीत न रखें , ये शोक के समय मे गाया जाने वाला गीत नही है भाई , इसके भाव तो हर पुत्र को हर समय मन मे रखने वाले भाव हैं , क्यों कि माँ का कर्ज़ तो कोई चुका ही नही सकता , फिर ये भाव आना तो शुभ है !!!!

मेरे विचार से शीर्षक बदलना उचित होगा !!!! आपको पुनः बधाई !!!!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 28, 2013 at 9:10pm

माँ अपने उपकार के बदले बच्चों से कुछ  नहीं चाहती इसलिए उसकी तुलना धरती माँ से की जाती है। विशाल हृदय माँ बस दुवा ही करना जानती है । हम  विचलित और  दुखी हुए तो माँ जहाँ भी जिस लोक में होगी असहज और उदास रहेगी। पश्चयाताप के आँसू बहाने के अतिरिक्त भी अपनी हैसियत के अनुसार माँ के नाम पर बहुत कुछ किया जा सकता हैं ।

आपकी वेदना हम सबकी वेदना है  माँ के जीवित रहते माँ को कोई नहीं समझ पाता आज की पीढ़ी तो बिलकुल भी नहीं , वह तो अपने में ही मस्त है। भावपूर्ण रचना की बधाई राजेश भाई।    

Comment by राजेश 'मृदु' on October 28, 2013 at 7:44pm

//यकीं मानिए कवि की माँ उससे सहानुभूति रख आशीवाद ही दे रही होगी//

प्रभु आपके इन वचनों को यदि सुन रहें हैं तो निश्चित ही ऐसा ही होगा । आपकी अनमोल प्रतिक्रिया हेतु हार्दिक आभार, सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 28, 2013 at 7:26pm

बहुत सुन्दर भाव रचित गीत रचना द्वारा अंतस में उठती ठीस को प्रस्तुत किया है आपने |इसे मै शोक गीत न कहकर अंतस की वेदना का गीत कहना पसंद करूंगा भाई श्री राजेश म्रदु जी | अपने आप में पश्च्याताप करता मनुज जब अपने आपको धिक्कारता

है तभी कवि मन कह रहा रहा है अपनी माँ को -

कौन मेरा विश्‍वास करेगा

तेरा ही जब हो न सका | - यकीं मानिए कवि की माँ उससे सहानुभूति रख आशीवाद ही दे रही होगी | सुन्दर भाव रचना के लिए ढेरों बधाइयां श्री राजेश "म्रदु" जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत दोहे चित्र के मर्म को छू सके जानकर प्रसन्नता…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर,  प्रस्तुत दोहावली पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आर्ष ऋषि का विशेषण है. कृपया इसका संदर्भ स्पष्ट कीजिएगा. .. जी !  आयुर्वेद में पानी पीने का…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service