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एक शहर
अत्यधिक आधुनिक टापुओ का है
जहाँ गरीवी बहुत बौनी दिखती है
हर गली में अमीरी गुलजार है
वहाँ गरीवो से अप्रत्यासित घ्रणा
अमीरों के अमीरी से बेशुमार प्यार है
वह "ग़ालिब "का शहर प्रेम से कितनी दूर हो गया है
हैवानियत ,दरिन्गीं ,लफ्फाजियो  के लिए मशहूर हो गया है
इस शहर में रहते है भारत के कर्णधार
जिनका प्रिय पेशा है भ्रस्टाचार
ओ किसी भी काम में अपने को शिद्ध पुरुष मानते है
तोप ,प्याज ,अनाज से लेकर चारा तक खाने में माहिर है
मै उनकी गाथा लिखने में असमर्थ हूँ
उनकी गाथा स्वयंभू जग जाहिर है
उनकी परम्परा पुस्तैनी परम्परा का पर्याय है
भारत की पुरातन परम्परा का ह्रास हो रहा है
इनकी परम्पराओ का नित-नूतन विकास हो रहा है
एक प्रश्न हर चौराहे पे खड़े आम -आदमी के आखों में है
कबतक इतिहास के पन्नों  को नोंचेगे ?
उत्तर तो मन- मानष में दफ़न है
जिस पर कई परत लिपटी कफ़न है
उसकी तलास में व्याकुल मन उत्तर दे रहा है
"कि जब- तक हम नहीं सोचेगे , तब तक इतिहास के पन्नो को नोचेगे i i "

मौलिक /अप्रकाशित
 -दिलीप कुमार तिवारी

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Comment by JAWAHAR LAL SINGH on October 12, 2013 at 9:50pm

दिल्ली दर्शन सही है !

Comment by बृजेश नीरज on October 12, 2013 at 8:03pm

आदरणीय अच्छा प्रयास है आपका! आपको हार्दिक बधाई!

एक निवेदन कि कविता में कविता का रहना जरूरी है!

टंकण त्रुटियों का ध्यान रखें!

सादर!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 11, 2013 at 3:45pm

आदरणीय दिलीप जी ..दिल की सच्ची भड़ास निकली है आपने ..वाकई अपना अतीत गौरवमयी था ..लेकिन बेशर्म को फर्क नहीं पड़ता है ..इसलिए अब इनके खिलाफ सबको एक जुट करने के लिए लिखना है ..सदर बधायी के साथ 

Comment by दिलीप कुमार तिवारी on October 11, 2013 at 12:25am

आदरणीय ए, अरुण जी इतने बड़े कवि की पन्तियों को लिख कर मेरा मान बढाया है आप के आशीर्वाद और स्नेह के लिए आभार

Comment by दिलीप कुमार तिवारी on October 11, 2013 at 12:16am

आदरणीय शुशील जी रचना पसंद करने एवं आशीष प्रदान करने के लिए ह्रदय से आभार धन्यवाद .............

Comment by दिलीप कुमार तिवारी on October 11, 2013 at 12:12am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी  आपका स्नेह और आप का बडप्पन है जो ऐसा कहता है बाकि दिल्ली के बारे में आप हमसे ज्यादा समझते है .......धन्यवाद

Comment by दिलीप कुमार तिवारी on October 11, 2013 at 12:09am

आदरणीय अनंत जी आपका स्नेह हमारा सफल मार्गदर्शन है .......धन्यवाद

Comment by दिलीप कुमार तिवारी on October 11, 2013 at 12:06am

आदरणीया प्राची जी सादर प्रणाम ........हम आप के स्कूल के छात्र है आप का आशीष मिलता रहेगा हम शीखते रहेगें i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 10, 2013 at 4:52pm

आ० दिलीप कुमार तिवारी जी

दिल्ली शहर मे मानवीय मूल्यों के ह्रास को प्रस्तुत करती अभिव्यक्ति..

अतुकांत अभिव्यक्तियों में यदि पंक्तियों को थोड़ा छोटा लिखा जाए और अंतर प्रवाह में निर्बाधता का ध्यान रखा जाए तो सपाटबयानी या गद्यात्मकता से बचा जा सकता है.

जिस पर कई परत लिपटी कफ़न है.........कफ़न शायद पुल्लिंग शब्द है!

कुछ टंकण त्रुटियाँ भी रह गयी हैं 

शुभकामनाएं 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 10, 2013 at 3:29pm

आदरणीय सर्व प्रथम आपका ओबीओ परिवार में हार्दिक स्वागत है, आप दिल्ली दर्शन करवाने में सफल रहे हैं बहुत ही सुन्दर रचना हुई है. कृपया कंटक त्रुटियों पर ध्यान दें. इस प्रयास पर मेरी ओर बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

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