For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दीप बन अँधेरी राहो पे जलने लगा हूँ !

धवल चंद्रमा सा चमकने लगा हूँ !

चीर  कर सीना निशा का  ,

जग के तम को हरने लगा हूँ !

ना दे सहारे को अब कोई बैसाखी !

खुद के पैरो पे जो चलने लगा हूँ !

लडखडाहट का दौर गुजर चुका है !

अब तो मैं सँभलने लगा हूँ !

धो चुका हूँ आँचल के दाग सारे !

फूलों सा अब महकने लगा हूँ !

बंदिशों के पिंजरे तोड़ सारे  !

मुक्त परिंदे सा चहकने लगा हूँ !

जला कर इर्ष्या और कपट को !

ज्वालामुखी सा दहकने लगा हूँ !

अब प्रायश्चित कर पाप का !

उत्थान की राह चलने लगा हूँ !

छोड़कर असत्य और झूठ को !

कीचड़ में कमल सा खिलने लगा हूँ !

 

------डॉ अनुराग सैनी -----

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 811

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on October 7, 2013 at 1:39am

रचना मे मजबूत भावनाएं पिरोईं !!

बधाई !!

Comment by विजय मिश्र on October 4, 2013 at 12:51pm
यह आत्मबिश्वास ही हमारे उत्थान का अवदान है ,उबरने का यह संकल्प और सुचेष्ट सबलता सराहनीय है .ओज से भरी-पूरी कविता . बधाई अनुरागजी
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 4, 2013 at 11:56am

दीप बन अँधेरी राहो पे जलने लगा हूँ !

धवल चंद्रमा सा चमकने लगा हूँ !

चीर  कर सीना निशा का  ,

जग के तम को हरने लगा हूँ !

ना दे सहारे को अब कोई बैसाखी !

खुद के पैरो पे जो चलने लगा हूँ !

बहुत सुंदर , सकारात्मक भाव, बधाई स्वीकारे आदरणीय अनुराग जी

Comment by annapurna bajpai on October 3, 2013 at 10:40pm

आदरणीय अनुराग जी बहुत सुंदर रचना बधाई आपको । 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 3, 2013 at 5:12pm

आप सभी के स्नेह और मार्गदर्शन के लिए आभार!  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 3, 2013 at 3:22pm

आदरणीय ..इस सुंदर रचना पर मेरी हार्दिक बधायी स्वीकार करने का कास्ट करें 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 3, 2013 at 11:22am

आदरणीय अनुराग जी बहुत सुन्दर रचना इस हेतु बधाई स्वीकारें बाकी आदरणीय भ्राताश्री एवं आदरणीय विन्ध्येश्वरी जी ने कह ही दिया है उनकी कहन का सज्ञान करें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on October 3, 2013 at 9:03am

आदरणीय अनुराग जी, सुंदर भावपूर्ण रचना हेतु बधाइयाँ, "चूका" को "चुका" करलें तो ? (केवल एक सलाह)

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 2, 2013 at 10:09pm

बधाई अनुरागजी अपने भावों को सुंदर ढ़ंग से पिरोने के लिये ।

Comment by Sushil.Joshi on October 2, 2013 at 9:46pm

भावों को बखूबी शब्दों में पिरोया है आपने आदरणीय अनुराग जी.... बधाई हो...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत दोहे चित्र के मर्म को छू सके जानकर प्रसन्नता…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर,  प्रस्तुत दोहावली पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय…"
12 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आर्ष ऋषि का विशेषण है. कृपया इसका संदर्भ स्पष्ट कीजिएगा. .. जी !  आयुर्वेद में पानी पीने का…"
13 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से…"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
13 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service