For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

डॉ. अनुराग सैनी's Blog (21)

छोड़ दी है हमने दुनिया तेरी ख़ुशी के लिए ---ग़ज़ल

छोड़ दी है हमने दुनिया तेरी ख़ुशी के लिए 

जी ना सकेंगे अब हम किसी के लिए

तेरा मिलना बिछड़ना तो एक ख्वाब था 

हम तो तरसते रहे तेरी हंसी के लिए

तेरी जुदाई से बढ़कर कोई गम नहीं 

जख्म काफी है ये ही मेरी जिंदगी के लिए

जिसे खुदा माना उसी ने ना समझा अपना 

अब कोई खुदा नहीं यहाँ बंदगी के लिए

बहुतो को क़त्ल होते देखा उसके हाथों तो जाना 

बहुत नाम कमाया है उसने अपनी दरंदगी के लिए

फिर आज एक हसीं को…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on November 18, 2013 at 7:00pm — 10 Comments

बदलाव

 वस्ल की उस रात को जमाने गुजर गए

शराब अभी भी वही है बस पैमाने बदल गए

 

शाम की गुल रंग हवा का कुछ ऐसा असर है

लबो पे सजे गम के सब तराने बदल गए  

 

अब कौन संभालेगा कौन गले से लगाएगा

बचपन के वो सब दोस्त पुराने बदल गए

 

अब कौन यहाँ जबान और कुल है देखता

अब तो वो चोहद्दर वो राजघराने बदल गए

 

अब चढ़ते छप्पर को हाथ लगाने कोई नहीं आता

अब तो गाँव के वो सीधे लोग सयाने बदल गए

 

मौलिक व अप्रकाशित

Added by डॉ. अनुराग सैनी on November 15, 2013 at 9:30pm — 9 Comments

तलाश की महफिले ------

तलाश की महफिले तो तन्हाईयाँ मिली !

मुझको वफ़ा के बदले  बेवफायियाँ मिली !

 

जिक्रे चाहत पर सदा लब खामोश ही रहे!

मुझको फिर क्यों  इतनी रुश्वायियाँ मिली !

 

मेरे रकीबो को तो साथ उसका मिला !

मुझको उसकी सिर्फ परछाईयाँ मिली !

 

मनायेगा शायद मातम मेरी जुदाई का वो !

सुनने को उसके घर पे शहनाईयाँ मिली !

हुस्न की बदौलत फ़लक को पा  गया  है वो !

मुझको खामोश कब्र सी गहराईयाँ मिली !

 

उसकी तूफ़ान-ए-…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on October 7, 2013 at 6:36pm — 10 Comments

जिंदगी मुझे तमाशा बनाकर चल पड़ी --------

किरण से कुहासा बना कर चल पड़ी !

जिंदगी मुझे तमाशा बना कर चल पड़ी !

समझ नही आता अर्थ किसी को मेरा !

कैसी ये परिभाषा बना कर चल पड़ी !

पा लूँ  अर्श को एक ही छलांग में !

कैसी ये अभिलाषा जगाकर चल पड़ी !

चंद दाद पाकर तसल्ली मिलती नही !

शोहरतों का प्यासा बनाकर चल पड़ी !

बड़ी हस्तियों में हो नाम शामिल मेरा !

मन में ये जिज्ञासा उठाकर चल पड़ी !

किरण से कुहासा बना कर चल पड़ी !

जिंदगी…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on October 6, 2013 at 4:26pm — 11 Comments

आया सावन का मस्त महीना---

ये कैसी है चम् चम् चम् चम् ,

क्यों  बहक रहा है मन,

टूटकर घटा से बरसे पानी,

हो गयी है रुत मस्तानी,

चारो और छायी हरियाली ,

जंगल मनाने लगा दिवाली ,

ऐसे बहे ठंडी बयार,

सपनो से हो जाए प्यार,

तन से टपके सुगन्धित  पसीना ,

लो आया सावन का मस्त महीना !

तन की बजने लगी सितार ,

आँखें देखे सपने हजार,

अपने प्रियतम का करे इंतज़ार ,

जैसे कोई दुल्हन मस्तानी ,

कैसे खुद को काबू कर पाए ,

कैसे अपने दिल…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on October 5, 2013 at 9:17pm — 13 Comments

कविता -------सुबह सुहानी लगती है

छाने लगी सूरज की लाली ,
गाने लगी कोयलिया काली ,
छूमंतर होने लगा अन्धकार ,
मीठी निंद्रा से जागा संसार !
मंद हवा के शीतल झोंके ,
तरोताजा कर जाते है ,
और पत्तो पे बिखरे ओस के मोती ,
गायब कहीं हो जाते है !
सूरज की पहली किरण से ,
अंग अंग मस्त हो जाता है ,
और निंद्रा पूरी कर रात की ,
 आलस कहीं खो जाता है…
Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on October 4, 2013 at 6:03pm — 5 Comments

नज्म ...........मुलाक़ात अधूरी है

              १

ना जाओ अभी कि मुलाक़ात अधूरी है !

तेरे – मेरे मिलन की हर बात अधूरी है !

 जाने क्यों चल दिए तुम दामन छुडाकर!

शबनमी आँखों से लाज के मोती गिराकर !

पुरसुकूं हुस्न की एक झलक दिखाकर !

अभी नही बुझी आँखों की प्यास अधूरी है !

ना जाओ अभी कि मुलाक़ात अधूरी है !

तेरे – मेरे मिलन की हर बात अधूरी है !

               २

काली बदलियों का आँखों में काजल लगाकर !

कांच के पैमाने में मय का जाम थमाकर !

रुखसारो पे…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on October 2, 2013 at 8:07pm — 13 Comments

उत्थान ----------कविता

दीप बन अँधेरी राहो पे जलने लगा हूँ !

धवल चंद्रमा सा चमकने लगा हूँ !

चीर  कर सीना निशा का  ,

जग के तम को हरने लगा हूँ !

ना दे सहारे को अब कोई बैसाखी !

खुद के पैरो पे जो चलने लगा हूँ !

लडखडाहट का दौर गुजर चुका है !

अब तो मैं सँभलने लगा हूँ !

धो चुका हूँ आँचल के दाग सारे !

फूलों सा अब महकने लगा हूँ !

बंदिशों के पिंजरे तोड़ सारे  !

मुक्त परिंदे सा चहकने लगा हूँ !

जला कर इर्ष्या और कपट को !

ज्वालामुखी सा…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on October 2, 2013 at 2:30pm — 17 Comments

कहानी प्यार के फूल------------

 आज बरसो के बाद उधर जा निकला जहाँ कभी मेरे प्यार की आखरी कब्र बनी थी , उस जगह न जाने कहाँ से दो पीले रंग के फूल खिले थे . आँखों से गंगा जमुना बहने लगी ! सब कुछ ऐसे याद आने लगा की जैसे कल ही की बात हो! मन पुरानी यादों में खो गया ! आज बहुत ज्यादा थक कर सोया था ये प्राइवेट स्कूल की नौकरी भी ना स्कूल वाले पैसे तो कुछ देते नहीं बस तेल निकलने पे लगे रहते है! ओ बेटा जल्दी उठा जा आज छुट्टी है तो क्या शाम तक सोयेगा जा उठकर देख दरवाजे पे कौन है माँ घर के दुसरे कोने पे कुछ काम कर रही थी , माँ की आवाज़…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on October 1, 2013 at 7:30pm — 2 Comments

किसी सफ़र से कम नहीं है मेरी जिंदगी ----------------

किसी सफ़र से कम नहीं है मेरी जिंदगी !

कुछ पल ठहरी , और फिर चल दी!

ना राहो का पता , ना मंजिल की खबर !

भटक रहा हूँ कभी इस डगर, कभी उस डगर !

कभी सर्दी की ठिठुरन , कभी गर्म लू के थपेड़े !

कभी खुशियों की आहट , कभी गम के घेरे !

कभी बारिश का मौसम , कभी दिन के उजाले !

कभी विष के घूंट , कभी मय के प्याले !

ना कोई हमराह , ना कोई संगी साथी !

मगर बढ़ते कदम ये है की रुकते नहीं है !

मीलों चल चुके है मगर थकते नहीं है !

ना है कोई…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on September 30, 2013 at 4:38pm — 7 Comments

मेरी एक आरजू !-------------कविता

आरजू है माँ कि फिर लौट आऊँ तेरे आँचल की छाँव में !

उन बचपन की गलियों में , उस बचपन के गाँव में !

वो तेरी ममता के साए , वो रातो की लौरी !

वो गय्यियो का माखन , वो दूध की कटोरी !

वो बचपन के संगी साथी , वो गाँव के गलियारे !

लगते थे मुझको स्वर्ग से भी प्यारे !

वो राजा रानी के किस्से , परियो की कहानी !

याद है मुझको आज भी जबानी !

अमृत सा रस लिए वो तेरे हाथो का निवाला !

वो गर्मी का मौसम , वो सर्दी का पाला !

अपने सीने से…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on September 29, 2013 at 3:00pm — 5 Comments

हौंसला चाहिए ...........................

हौंसला चाहिए जहाँ में मोहब्बत पाने के लिए !

मोहब्बत जताने के लिए , मोहब्बत निभाने के लिए !

रुश्वायियाँ मिला नही करती खैरात में !

इज्ज़त से भी खेलना पड़ता है , इन्हें पाने के लिए !

बहुत मशहूर है शराबी अपने हाल पर !

हस्ती भी मिट जाती है , ये शोहरत पाने के लिए !

दिल का हाल कभी उस बाजारू नारी से पूछो !

मजबूर होती है जो बाज़ार में बिक जाने के लिए !

बस्ती मिटाने वालो पलभर को तो जरा सोच लो !

जवानी बुढापे में बदल जाती है एक आशियाँ बनाने…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on September 27, 2013 at 10:13pm — 6 Comments

निगाहें फेर लो .........

निगाहें फेर लो , कि पल भर सुकून मेरे तडपते दिल को मिले !

तेरी नजरों की तपिस मुझसे सही नही जाती !

 

मेरी  बेवफाई को हो रहा है शोर जमाने में , की तू भी मुझे बेवफा कहे !

बात सच है मगर लबों पर तेरे  नहीं आती ! 

 

होकर बेसुध सोये थे कभी तेरे बांहों के घेरो में, अब ना तु बांहे फैला !

ये सच है की गुजरी घडी कभी लौटकर नही आती ! 

 

सुना है कि गमजदा है तु बीते पलो की ख्वाईस में, कि अब उनको भुला दे !

मुझे तो पल भर के लिए भी याद तेरी…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on September 25, 2013 at 6:30pm — 4 Comments

भोर हो चुकी है

मन की अंतर्वेदना , कहीं बह ना जाए आंसुओ में !

बहुत टुटा हूँ ,समेट लो बाजुओं में !

अपमान के ना जाने कितने घूंट पी चूका !

पर प्यासा हूँ , डूब जाने दो आँखों में !

घना होता जाता है ये अन्धकार क्यों ?

एक दिया तो उम्मीद का जलाओ रातो में !

तिरस्कार किया गया , हिकारत से देखा गया !

ना जाने कैसा भाग्य है मेरे इन हाथो में !

लौट जाओ कि अब रंगीन जवानी गुजर चुकी !

हासिल होगा क्या  अब इन मुलाकातों में…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on September 24, 2013 at 5:00pm — 9 Comments

खिलखिला के आई जवानी ..............कविता

कामनाओ ने ली अंगडाई

होने लगी रुत मस्तानी,

बचपन बिता जागी उमंगें

खिलखिला के आई जवानी |…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on September 23, 2013 at 5:48pm — 6 Comments

बुरा लगता है

तुम से न हो अगर बात तो बुरा लगता है,

तुम से न हो अगर मुलाकात तो बुरा लगता है!

तुमसे मिलने की तारीखें तो तय कर लूँ,

मगर हो जाये फिर बरसात तो बुरा लगता है!

हर पल है चाह तेरी हर पल तेरी ही आरजू है,

तेरे दीदार की दिल में कोई जुस्तजू जगी है,

न समझो तुम मेरे  जज्बात तो बुरा लगता है!

सदियों से चाह है तेरे दीदार की,

अब तो हद हो गयी मेरे इंतज़ार की,

ये दिन तो बीत जाते है सदियों से लम्बे,

मगर…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on September 13, 2013 at 10:16pm — 8 Comments

आग की एक चिंगारी

आग की एक चिंगारी

सियासत के तूफानी थपेड़े झेल ,

फैली मीलो एक चिंगारी,

मिटाने को आतुर ,

निगल लेने को सबकुछ,

अंतर न अपने का ना पराये का ,

ना जातिवाद कोई ना ही कोई धरम ,

मुंह खोल आगे को बढ़ी आती ,

ना देखती दोष किसी का ,

न निर्दोष की चिंता ,

ना कोई लालच न कोई गम ,

चिरनिंद्रा में सुलाने को आतुर ,

एक छोटी सी चिंगारी ,

ये दोष है हम सबका ,

या नियति का लिखा ,

एक भूल है हम सबकी ,

जो इसके शिशु…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on September 13, 2013 at 4:30pm — 4 Comments

मौन

मौन !

ये कैसा मौन ?

अन्तर्मन में ,

कुछ टूटता सा ,

सुनाई देती जिसकी गूंज देर तक !

हर घटना पर छोड़ जाता कई यक्ष प्रशन !

आँखों में ये कैसा मौन ?

लबो पे ये कैसा मौन ?

दिल में बरछी की तरह गड़ता ,

तीर की तरह चुभता ये मौन ,

ये गवाह है एक बड़े विनाश का !

और जवाब है खुद ही अबूझ सवालों का ,

दिल की हर भावना से जुड़ा ,

मन के किसी कोने में पला ,

पल पल गहराता जाता,

ये कैसा अबूझ मौन ?

जो पहेली बन…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on September 12, 2013 at 4:30pm — 6 Comments

यादें

यादें

भूली बिसरी यादें ,

कुछ मिट गयी कुछ है अमिट,

एक पल मिल जाये तो संजो लूँ इन्हें ,

कुछ खुबसूरत

कुछ दर्द छेडती,

लबो पे मुस्कान सजाती यादें ,

जख्मो को उघाडती यादें ,

मन के किसी कोने में बसी यादें ,

जिंदगी का इम्तिहान बनी यादें ,

एक पल मिल जाए तो संजो लूँ इन्हें ,

कुछ में उभरता उसका अक्स ,

कुछ कोहरे सी छाई होशोहवास पे ,

खुद में खुशियाँ अपार लिए ,

कुछ गमो का एक संसार लिए ,

धुंधली सी…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on September 11, 2013 at 8:08pm — 5 Comments

उसको भुलाऊं कैसे ?

गरूर से उठा ये सर मैं झुकाऊ कैसे ?

अपनी यादों से उसके साए मिटाऊं कैसे ?

गुजरा है जिंदगी का हर पल उसी के पहलूँ में !

उसकी साँसों की महक को मैं  भुलाऊं कैसे ?

शिकवा रहा है उसको मेरे न मनाने का यारो ,

मालुम नही ये फन मुझे उसको ये बताऊँ कैसे ?

बड़ा बेगैरत होकर निकला हूँ उसके कूंचे से मैं ,

फिर उससे मिलने उसी दर पे मैं जाऊं कैसे ?

दिलके अरमानो की किश्ती तो  तूफ़ान में बह गयी ,

अब टूटी पतवार को साहिल पे लाऊं कैसे ?

दिल तडपता है…

Continue

Added by डॉ. अनुराग सैनी on September 10, 2013 at 5:09pm — 5 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post रोला छंद. . . .
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय जी सृजन पर आपके मार्गदर्शन का दिल से आभार । सर आपसे अनुरोध है कि जिन भरती शब्दों का आपने…"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने एवं समीक्षा का दिल से आभार । मार्गदर्शन का दिल से…"
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
10 hours ago
Admin posted discussions
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"बंधुवर सुशील सरना, नमस्कार! 'श्याम' के दोहराव से बचा सकता था, शेष कहूँ तो भाव-प्रकाशन की…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"बंधुवर, नमस्कार ! क्षमा करें, आप ओ बी ओ पर वरिष्ठ रचनाकार हैं, किंतु मेरी व्यक्तिगत रूप से आपसे…"
yesterday
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post लघुकविता
"बंधु, लघु कविता सूक्ष्म काव्य विवरण नहीं, सूत्र काव्य होता है, उदाहरण दूँ तो कह सकता हूँ, रचनाकार…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Dharmendra Kumar Yadav's blog post ममता का मर्म
"बंधु, नमस्कार, रचना का स्वरूप जान कर ही काव्य का मूल्यांकन , भाव-शिल्प की दृष्टिकोण से सम्भव है,…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .यथार्थ
"अच्छे दोहे हुए हैं, आदरणीय सरना साहब, बधाई ! किन्तु दोहा-छंद मात्र कलों ( त्रिकल द्विकल आदि का…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service