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तुमको देखे

बरसों बीते

सूखे फूल

किताबों में

अहिवाती बस

एक छुअन ही

रही महकती

हाथों में

मन के कोरे

काग़ज भी तो

क्षत को गिरे

प्रपातों में

अनगिन पारिजात

मगर तुम

रख गए

कलम-दावातों में

आओ ना

इस इंद्रधनुष पर

दो पल बैठें

बात करें

शावक जैसी

कोमल राते

उतर रही

आहातों में

(सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 24, 2013 at 10:41am

वाकई मन को छू लेने वाली रचना ..सीधे दिल में उतरने वाली ..मेरी तरफ से हार्दिक बधाई ..सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 23, 2013 at 8:37pm

तुमको देखे

बरसों बीते

सूखे फूल

किताबों में

अहिवाती बस

एक छुअन ही

रही महकती

हाथों में

बेहद सुंदर भाव, मन को छू लेने वाली रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय राजेश जी

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 23, 2013 at 7:11pm

मन को छूने वाली सुंदर रचना , बधाई राजेश भाई ।

Comment by vijay nikore on September 23, 2013 at 6:10pm

//

मन के कोरे

काग़ज भी तो

क्षत को गिरे

प्रपातों में

अनगिन पारिजात

मगर तुम

रख गए

कलम-दावातों में//

बहुत ही सुन्दर रचना है। भावपूर्ण ।

बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on September 23, 2013 at 5:34pm

मन के तार को छेड़ गयी ये रचना आपकी बहुत कुछ याद दिला दिया ! बार बार बधाई आपको

Comment by annapurna bajpai on September 23, 2013 at 2:48pm

 आदरणीय, राजेश जी इस सुंदर भाव पूर्ण रचना हेतु हार्दिक  बधाई स्वीकारें ।

कृपया ध्यान दे...

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