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ग़ज़ल
वजन : 2212 2212

 

बकवास सारा आ गया,
खबरों में रहना आ गया ।1। 
 

जो धड़कनें पढ़ने लगे, 
तो शेर कहना आ गया ।2।

 

जब सिर बँधी पगड़ी मेरे,
तब ही से सहना आ गया ।3।

 

जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।4।

 

दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5।

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : डर

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2013 at 11:41am

आदरणीय भाई अभिनव अरुण जी आप जैसे ग़ज़लगो से सराहना मिलना किसे न खुश कर जाय, मन आनंदित है, बहुत बहुत आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2013 at 11:39am

आभार सिज्जू भाई । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2013 at 11:38am

आदरणीय भ्रमर जी, प्रोत्साहित करती टिप्पणी हेतु सादर आभार व्यक्त करता हूँ । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 14, 2013 at 11:36am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, शेर दर शेर हुई आपकी टिप्पणी पढ़ अत्यंत उत्साहित महसूस कर रहा हूँ, आपकी सराहना मेरे लिए महत्वपूर्ण है, बहुत बहुत आभार ।   

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 14, 2013 at 11:10am

जब सिर बँधी पगड़ी मेरे,
तब ही से सहना आ गया ।3।.......वाह! क्या कहने,  लाजवाब शेर

बहुत खूब , बेहतरीन गजल , तहे दिल से दाद कुबूल कीजिये आदरणीय गणेश जी

Comment by Abhinav Arun on September 14, 2013 at 9:13am

धड़कन जो पढ़ना आ गया,
तो शेर कहना आ गया ।2।

जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।4।

दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5

         ..... लाजवाब जिंदाबाद कलाम श्री बागी जी क्या कहने बहुत उम्दा सामयिक सशक्त ...बधाई बधाई !!।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 14, 2013 at 8:15am

बहुत बढ़िया आदरणीय बागी जी इस ग़ज़ल के लिये दाद कुबूल करें

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 14, 2013 at 12:15am

दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5।

आदरणीय बागी जी ...अद्भुत ..क्या समझा गई ये प्यारी और अनोखी गजल .आँखें खोलने वाली ..बधाई ......
भ्रमर ५


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 13, 2013 at 11:40pm

बकवास करना आ गया,
खबरों में रहना आ गया ।1।-----सही कटाक्ष

धड़कन जो पढ़ना आ गया,
तो शेर कहना आ गया ।2।-----वाह्ह्ह्ह लाजबाब धडकनों में डूब कर ही ये शेर लिखा है लगता है

जब सिर बँधी पगड़ी मेरे,
तब ही से सहना आ गया ।3।----बहुत गंभीर शेर दिल छू गया

जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।4।---वाह बहुत बढ़िया कटाक्ष

दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5।----लाजबाब लाजबाब कितनी तारीफ करूँ इस शेर की कम होगी
आदरणीय गणेश जी पहले प्राची जी की ग़ज़ल पढ़ी आज अभी आपकी पढ़ रही हूँ लगता है ओ बी ओ गजलमय हो रहा है
बहुत शानदार ग़ज़ल लिखी आपने तहे दिल से दाद देती हूँ


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 13, 2013 at 9:48pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपकी टिप्पणी एकदम से उत्साह्वार्धित करती है, प्रथम सराहना पाकर अच्छा लगा, आभार प्रेषित है स्वीकार करें । 

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