तपती वसुन्धरा  में 
 श्रम सक्ती के समन्वय रूपी खाद में 
 निर्माणों के
विशालकाय पेंड़ो को रोपता है 
 अपने कंधो के सहारे ढोता है
गरीवी का बोझ 
 जिसमे उसका स्वाभिमान
दबा हैं , कुचला है 
 मन अनंत गहराईयों में
डूबता उतराता चुप है 
 शांति समर्पण की अदभुत मिशाल "मजदूर "
 वर्तमान भारत में खो गया है 
 निर्माणों के अंधे युग में  आज 
 निर्माण से ही दूर हो गया है
 मौलिक /अप्रकाशित 
 दिलीप तिवारी  रचना -८ /९/१ ३ 
Comment
"आदरणीय राम शिरोमणि जी आपका हार्दिक आभार!"
आदरणीया प्राची जी रचना पढ़ने के लिए ह्रदय से आभार ......
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना //हार्दिक बधाई आपको आदरणीय तिवारी जी
"मजदूर "
वर्तमान भारत में खो गया है 
निर्माणों के अंधे युग में  आज 
निर्माण से ही दूर हो गया है
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी कथ्य.संवेदन शील सामाजिक लेखन पर बहुत बहुत बधाई
कुछ टंकण त्रुटियाँ रह गयी हैं , उन्हें अवश्य ही सुधार लें
शुभेच्छाएँ
मुझे आप लोगो  द्वारा दिया गया कमेंट मेरे लिए आशीर्वाद है जो मेरे कविता को नयी दिशा देगा सादर
प्रणाम के साथ आभार ........................
आ0 दिलीप जी बहुत बधाई आपको , बढ़िया ढंग से मजदूर की व्यथा का चित्रण किया है ।
शांति समर्पण की अदभुत मिशाल "मजदूर "
वर्तमान भारत में खो गया है 
निर्माणों के अंधे युग में  आज 
निर्माण से ही दूर हो गया है
भावनात्मक अभिव्यक्ति
हार्दिक बधाई
बहुत सही विषय पर , लिखी गयी भावनात्मक रचना, बधाई स्वीकारें आदरणीय दिलीप जी
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