मै आदमी हूँ
सम्बेदंशील हूँ
मुझे कई आदमी
कहलाए जाने वालों
ने छला है I
छाछ फूककर
पीता हूँ हर-बार
क्यों की मेरा मुह
दिखावे के गर्म दूध से जला है I I
कल्पनाओ का समंदर
मेरे मन में भी है
कुछ पाने की चाह में
जीवन की राह में तुमसे मिला है I I I
मुझे रोकना नहीं
टोकना नहीं तुम
बढने दो मेरे पैर
ये हमारी दुश्मनी बदल कर
दोस्ती का सिलशिला है I I I I
मौलिक /अप्रकाशित
दिलीप कुमार तिवारी
Comment
बहुत सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!
आदरणीय, इन शब्दों के अर्थ जानना है।
सम्बेदंशील?
सिलशिला?
आदरणीया अन्नपूर्णा जी आप को रचना पसंद आयी इसके लिए ह्रदय से आभार
आदरणीय अनंत जी आपके स्नेह और आशीष के लिए ह्रदय से आभार
सम्माननीया महिमा जी आप को सादर
आभार...रचना को पसंद करने के लिए
सम्माननीया मीना जी आप को सादर
आभार....
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपका स्नेह और आशीष के लिए ह्रदय से आभार
बहुत सुन्दर रचना ....बधाई आप को
आदरणीय दिलिप भाई , सुन्दर अभिव्यक्ति , सुन्दर रचना के लिये बधाई !!
सच्ची सुंदर अभिव्यक्ति ...बधाई ..
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