For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

करें हम

मान अब इतना

सजा लें

माथ पर बिन्दी।

बहे फिर

लहर कुछ ऐसी

बढ़े इस

विश्व में हिन्दी।।

 

गंग सी

पुण्य यह धारा

यमुन सा

रंग हर गहरा

सुबह की

सुखद बेला सी

धरे है

रूप यह हिन्दी।।

 

मधुरता

शब्द आखर में

सरसता

भाव भाषण में

रसों की

धार छलके तो

करे मन

तृप्त यह हिन्दी।।

 

तोड़कर

बॅंध दासता के

सभी भ्रम

जाल भाषा के

बसा लें

प्रेम अब इसका

प्रथम हो

देश में हिन्दी।।

                - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

Views: 800

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on September 6, 2013 at 7:22pm

आदरणीया शुभ्रा जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 6, 2013 at 7:21pm

आदरणीय रमेश जी आपका बहुत बहुत आभार!

Comment by shubhra sharma on September 6, 2013 at 10:52am

आदरणीय ब्रजेश नीरज जी , आपने अपनी भावपूरित कविता से मातृभाषा हिंदी को जो मान दिया है ,तहे दिल  से बहुत बहुत बधाई 

Comment by रमेश कुमार चौहान on September 6, 2013 at 10:30am

प्रेम अब इसका

प्रथम हो

देश में हिन्दी।।
आपके इस पंक्ति में मै भी अपनी शुभेच्छा सम्मिलित करना चाहता हू । आपके हिन्दी प्रेम एवं साहित्य प्रेम को सादर नमन

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 8:17pm

आदरणीय राम भाई आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 8:16pm

आदरणीय जितेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार! आपके शब्दों से बहुत बल मिला।

Comment by बृजेश नीरज on September 5, 2013 at 8:04pm

आदरणीय केवल भाई आपका हार्दिक आभार!

Comment by ram shiromani pathak on September 5, 2013 at 8:02pm

आदरणीय भाई ब्रिजेश जी ,हिन्दी के प्रति आपका समर्पण साफ दिख रहा है ///बहुत ही सुंदर रचना हार्दिक बधाई आपको //सादर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 5, 2013 at 8:00pm

गंग सी

पुण्य यह धारा

यमुन सा

रंग हर गहरा

सुबह की

सुखद बेला सी

धरे है

रूप यह हिन्दी।।......बहुत ही सुंदर शब्दावली से मातृभाषा की सुन्दरता का अनुपम गुणगान

हिन्दी मातृभाषा से लगाव , सुन्दरता व् मान को बयां करती, बेहद खुबसूरत पंक्तियाँ, बहुत बहुत बधाई आदरणीय बृजेश जी

 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 5, 2013 at 7:53pm

आ0 बृजेश भाई जी, सादर प्रणाम! बहुत खूब।
//मधुरता
शब्द आखर में
सरसता
भाव भाषण में
रसों की
धार छलके तो
करे मन
तृप्त यह हिन्दी।।
//इन सुन्दर भावों के लिए आपको बहुत बहुत हार्दिक बधाई। सादर,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
21 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service