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सितार के

सुरमई तारों की झंकार से

गूँज उठी

स्वप्न नगरी..

समय के धुँधलके आवरण से

शनैः शनैः

प्रस्फुटित हो उठी

एक आकृति

अजनबी

अनजान..

स्वप्नीली पलकें

संतृप्त मुस्कान

प्राण-प्राण अर्थ

निःशब्द..

निःस्पर्श स्पंदन

कण-कण नर्तन

क्षण विलक्षण

मन प्राण समर्पण

सखा-साथी-प्रिय-प्रियतम-प्रियवर

अनकहे वायदे, गठबंध परस्पर - हमसफ़र !

 

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Comment

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Comment by Meena Pathak on September 4, 2013 at 11:11am

सहमत हूँ आप से आ० बृजेश जी ...

Comment by बृजेश नीरज on September 4, 2013 at 10:45am

//डा० प्राची,  आपकी इस रचना की अंतिम से पूर्व वाली पंक्ति का तीसरा शब्द प्रयोग करने की अनुमति मिले, तो अपनी टिपण्णी इस रचना के लिए करूं ...//

इस तरह की टिप्पणियां आपत्तिजनक हैं। बेहतर है कि यहां की परिपाटी के अनुसार आदरणीय और आदरणीया जैसे संबोधनों का ही प्रयोग किया जाए। इस मंच पर जो परिवार जैसा माहौल है उसे बरकरार रखने में सभी सदस्य सहयोग करें जिससे कि सार्थक चर्चाओं में सभी सदस्य निसंकोच होकर प्रतिभाग कर सकें।

सादर!

Comment by vijay nikore on September 1, 2013 at 4:40pm

इस सुन्दर रचना के लिए आपको बधाई।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 1, 2013 at 9:18am

अभिव्यक्ति का अनुमोदन कर बधाई संप्रेषित करने के लिए धन्यवाद आ० सौरभ जी 

टंकण त्रुटि की ओर ध्यानाकर्षण के लिए भी आभार 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 1, 2013 at 9:17am

अभिव्यक्ति का शब्द संयोजन सराहने के लिए आभार प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2013 at 1:53am

आत्मीय के प्रति भाव-स्वर अनहद की आवृत्ति को जीता है. भाव-उद्बोधन की पराकाष्ठा सभी सम्बोधनों से परे या समस्त सम्बोधनों को समाहित किये हुए होती है.

इस अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाइयाँ, डॉ, प्राची.

टंकण त्रुटियाँ हैं. देख लीजियेगा.

सादर

Comment by ram shiromani pathak on August 30, 2013 at 9:46pm

समय के धुँधलके आवरण से

शनैः शनैः

प्रफुटित हो उठी

एक आकृति

अजनबी

अनजान..

स्वप्नीली पलकें

संतृप्त मुस्कान///////////वाह आदरणीया प्राची जी अद्भुत शब्द संयोंजन 

हार्दिक  बधाई  आपको //सादर  


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on August 30, 2013 at 11:42am

///डा० प्राची,  आपकी इस रचना की अंतिम से पूर्व वाली पंक्ति का तीसरा शब्द प्रयोग करने की अनुमति मिले, तो अपनी टिपण्णी इस रचना के लिए करूं ...!///

आदरणीय श्याम जुनेजा जी, आप अपनी बेटी बहनों से भी "प्रिय" संबोधन हेतु अनुमति मांगते हैं क्या ? यदि नहीं तो यहाँ क्यों ? आप के माध्यम से आप सहित सभी सदस्यों को यह ध्यान दिलाना चाहता हूँ कि ओ बी ओ आपका अपना परिवार है कोई मार्क जुकेरबर्ग की साईट नहीं । 

सादर 

गणेश जी बागी 
मुख्य प्रबंधक 

ओपन बुक्स ऑनलाइन 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 30, 2013 at 9:26am

प्रस्तुत अभिव्यक्ति को समय देने के लिए आप सभी सुधिजनों की हृदय से आभारी हूँ 

सादर धन्यवाद !

* प्रिय वंदना जी , आप रचना या रचनाकर्म की परिधि में किसी भी संशय को निःसंकोच पूछें..आपका सदैव स्वागत है 

* आदरणीय श्याम जुनेजा जी, किसी भी रचनाकार की रचना पर टिप्पणी, किसी संबोधन के लिए प्रयुक्त शब्द विशेष पर निर्भर हो सकती है... ये जानना मेरे लिए अत्यंत आश्चर्य का विषय है.

ओबीओ मंच पर बेटियों अनुजाओं अनुजों के लिए इस शब्द का प्रयोग हम सभी करते हैं पर.. पर यह ज़रूर है कि कोई संबोधन यदि आरोपित सा नहीं लगे तभी उसको सहज अपनाया जाता है. शायद सहमत हों.

Comment by बृजेश नीरज on August 29, 2013 at 7:37pm

बहुत ही सुन्दर! आपको हार्दिक बधाई!

कृपया ध्यान दे...

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