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माँ

माँ होती है आदि गुरु
जीवन की दी प्राथमिक शिक्षा
बोलना सिखाया जिसने हमेँ
चलना सिखाया जिसने हमें
वो है माँ

होता है स्वर्ग का अहसास
माँ के ही आँचल में
मिलता है सुकून मन को
की जो माँ की निस्वार्थ सेवा
अपार कष्ट सहा जिसने
वेदना सही जिसने असीम
जन्म दिया फिर भी हमको
वो है माँ

परवाह नहीं की जिसने
अपनी भूख और प्यास की
अन्न पहुँचाया हमारे पेट
खुद पानी पीकर सो रही
हमको ना उसने भूखा सुलाया
वो है माँ

हमारी तकलीफ जिसने खुद झेली
हमको ना कष्ट कभी होने दिया
रातों की नींद गंवाई जिसने
हमारी लातें सही जिसने
वो है माँ

आनन्द ही आनन्द है
माँ की निस्वार्थ सेवा में
नहीं आए कपट मन में कभी
माँ की मनमोहनी मूर्ती के प्रति
आभारी हूँ ईश्वर का मैं
माँ की कोख में आने का अवसर दिया
मुझको लगती मेरी माँ प्यारी
छवी माँ की है सबसे न्यारी।
- सतवीर वर्मा 'बिरकाळी'

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Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on May 24, 2013 at 7:41pm
आ॰ Ashok Kumar Raktale जी, रचना पर अपने हस्ताक्षर करने और उत्साह बढाने के लिए धन्यवाद सा।
Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on May 24, 2013 at 7:39pm
आ॰ VISHAAL CHARCHCHIT जी, गलतियों की तरफ इशारा करके आपने मुझे मजबूर कर दिया कि मैं दोबारा से अपनी रचना का निरीक्षण करुं। अगर आप एक दो गलत शब्द भी बता देते तो मेरी परेशानी कुछ कम हो जाती। आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए महत्त्वपूर्ण है और आपके सुझाव पर अमल करुंगा। प्रतिक्रिया देने के लिए धन्यवाद सा।
Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on May 24, 2013 at 7:34pm
आ॰ अरुण शर्मा 'अनन्त' जी, आपके उत्साह वर्धन का मैं आभारी हूँ। आपको आगे भी इस मंच पर मेरी रचनाएँ पढने को जरुर मिलेंगी।
Comment by Ashok Kumar Raktale on May 21, 2013 at 10:43pm

आदरणीय सतवीर जी सादर, हर जीवन पर माँ की छाया को दर्शाती सुन्दर रचना. बधाई स्वीकारें.

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on May 20, 2013 at 2:20pm

कहीं - कहीं मात्राओं की गलती खटकी .......लेकिन भाव अच्छे है......!!!!

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 20, 2013 at 1:45pm

आदरणीय सतवीर जी बहुत ही सुन्दर रचना है, इस तरह की रचनाओं में मुझे कोई कमी महसूस नहीं होती, अप्रितम और मनोहारी ही लगती, माँ के एहसास को अनुभूति को शब्दों में बाँधने की सुन्दर कोशिश की है आपने, परन्तु आदरणीय मैं समझता हूँ की केवल "माँ" शब्द ही इतना अमूल्य और अनन्त है कि शब्दों में पिरोना कठिन ही नहीं अपितु असंभव है. इस सुन्दर रचना हेतु मेरी ओर से बधाई स्वीकारें. आप की रचना पहली बार पढ़ रहा हूँ उम्मीद है आगे भी पढ़ने का सौभाग्य मिलता रहेगा. सादर.

Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on May 19, 2013 at 9:57am
उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद आ॰ केवल प्रसाद जी।
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 16, 2013 at 8:50pm

आ0 विरकाळी जी, यह बात बिलकुल सच है कि - ’हमारी तकलीफ जिसने खुद झेली
हमको ना कष्ट कभी होने दिया
रातों की नींद गंवाई जिसने
हमारी लातें सही जिसने
वो है माँ’....... बधाई स्वीकारें। सादर,

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