For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सोचता है मनुष्य
खुदगर्ज होकर
नहीं है बङा कोई उससे
हरा सकता है वह
अपने तिकङमबाज दिमाग से
प्रकृति को भी
भरोसा होता है उसे बहुत ज्यादा
अपने तिकङमबाज मस्तिष्क पर
समर्थन भी कर देती है
उसकी इस सोच का
शुरुआती सफलताएँ
नहीं सोचता वह ये
होते हैं प्राण प्रकृति में भी
होती हैं भावनाएँ प्रकृति में भी
करता जाता है मनुष्य
प्रकृति का विनाश
अपनी तिकङमों से
अपनी स्वार्थसिद्धि हेतु।

प्रकृति होती है नारी स्वरुपा
होती है सहनशील
प्रकृति की प्रकृति
दबा लेती है वह
मन में उठते ज्वालामुखी को
नहीं चाहती वह
मानव सभ्यता का विनाश
लेकिन गुजर जाता है जब
पानी सिर से ऊपर
नहीं रोकता मनुष्य
प्रकृति विरोधी कुकर्मों को
करता जाता है जब मनुष्य
विकास के नाम पर विनाश
जीवनदायिनी प्रकृति का
धारण करती है प्रकृति
रुप तब दुर्गा का
उठाती है शस्त्र
दण्ड देने के लिए
प्रकृति के विनाशकों को
तिकङमबाजों को।

आता है तब जलजला
कांप उठती है पृथ्वी
लहरें उठती हैं सागर में
फट पङते हैं पर्वत
जला देती है पवन
कर देती है सफाया
ले लेती है अपने आगेश में
प्रकृति के विनाशकों को
पाठ पढाती है प्रकृति
अपने विनाशकों को
मत करो मेरा विनाश
मुझमें भी हैं प्राण
मैं भी लेती हूँ साँस
एक मनुष्य की तरह
जुङी है मुझसे ही
मानव सभ्यता की आस
मैं जब तक रहुँगी
रहेगी मानव सभ्यता तब तक
करोगे अगर तुम मेरा विनाश
सोच लेना फिर
हो जाएगा विनाश
मानव सभ्यता का भी
मार रहे हो तुम कुल्हाङी
खुद अपने ही पैरों पर
नहीं बचोगे तुम भी
करके मेरा विनाश
बचानी है अगर मानव सभ्यता
करो मेरा भी रक्षण।

.

(मौलिक व अप्रकाशित)
- सतवीर वर्मा 'बिरकाळी'

Views: 1036

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on July 6, 2013 at 7:50pm

आदरणीय सतबीर जी आपका हार्दिक आभार कि आपने मेरे कहे को मान दिया।
सादर!

Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on July 6, 2013 at 6:49pm
रचना पसन्द करने और अपनी सुन्दर प्रतिक्रिया द्वारा प्रोत्साहन करने हेतु आपका आभार आ॰ विजय मिश्र जी।
Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on July 6, 2013 at 6:47pm
आ॰ बृजेश नीरज जी, रचना लिखते समय यही लगता है कि चलो जो सन्देश देना था उसके लिए इतना काफी है। पर जब रचना एक पाठक के तौर पर दोबारा पढता हूँ तो यही सोचता हूँ कि रचना को कुछ और समय की जरुरत थी। आपकी सलाह अगली रचना में जरुर याद रखुँगा।

प्रकृति में भी भावनाएँ होती हैं का भावार्थ ये है कि कुछ स्वार्थी लोग ये सोचने लगते हैं कि प्रकृति अमूर्त है और इसके साथ कैसा भी व्यवहार किया जाए, ये कुछ नहीं कहती है। पर प्रकृति भी अपने क्रियाकलापों द्वारा मानव के द्वारा प्रकृति पर किए गये अत्याचार या संपोषण पर प्रतिक्रिया व्यक्त करती है। उत्तराखंड में बादल फटने की क्रिया मानव की करतूतों का परिणाम है जिसके द्वारा प्रकृति कहना चाहती है कि अति सर्वत्र वर्जयेत।
Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on July 6, 2013 at 6:39pm
सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए आभार आ॰ राजेश कुमारी जी।
Comment by विजय मिश्र on July 6, 2013 at 5:06pm
"प्रकृति होती है नारी स्वरुपा
होती है सहनशील " ---- अति को प्रकृति अंत करती है ,तुरन्त करती है और जब करती है तो सूद-ब्याज के साथ करती है .शिक्षाप्रद सन्देश भी एक सुन्दर कविता भी .बधाई सतवीरजी
Comment by बृजेश नीरज on July 5, 2013 at 6:33pm

आदरणीय सतवीर जी आपने विषय बहुत अच्छा चुना! आपके इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई! कुछ समय और देना चाहिए था रचना को।

इस पंक्ति का अर्थ स्पष्ट करने का कष्ट करें। //भावनाएँ प्रकृति में भी//?

सादर!

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 5, 2013 at 5:24pm

प्रकृति से मनमानी ही तो विनाश का कारण  बनती है जो पूर्णतः स्पष्ट है प्रस्तुति में बधाई 

Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on July 4, 2013 at 6:00pm
अपनी सुन्दर प्रतिक्रिया देकर प्रोत्साहन करने के लिए आभार आदरणीया कुन्ती मुकर्जी जी।
Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on July 4, 2013 at 6:00pm
अपनी सुन्दर प्रतिक्रिया देकर प्रोत्साहन करने के लिए आभार आदरणीय कुन्ती मुकर्जी जी।
Comment by सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' on July 4, 2013 at 5:59pm
एक छोटे से प्रयास पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए आभार आदरणीय रविकर जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
18 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बढ़िया शीर्षक सहित बढ़िया रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"रचना पटल पर उपस्थिति और विस्तृत समीक्षात्मक मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर…"
Friday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"जिजीविषा गंगाधर बाबू के रिटायर हुए कोई लंबा अरसा नहीं गुजरा था।यही दो -ढाई साल पहले सचिवालय की…"
Friday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी , इस प्रयोगात्मक लघुकथा से इस गोष्ठी के शुभारंभ हेतु हार्दिक…"
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service