सोचता है मनुष्य
खुदगर्ज होकर
नहीं है बङा कोई उससे
हरा सकता है वह
अपने तिकङमबाज दिमाग से
प्रकृति को भी
भरोसा होता है उसे बहुत ज्यादा
अपने तिकङमबाज मस्तिष्क पर
समर्थन भी कर देती है
उसकी इस सोच का
शुरुआती सफलताएँ
नहीं सोचता वह ये
होते हैं प्राण प्रकृति में भी
होती हैं भावनाएँ प्रकृति में भी
करता जाता है मनुष्य
प्रकृति का विनाश
अपनी तिकङमों से
अपनी स्वार्थसिद्धि हेतु।
प्रकृति होती है नारी स्वरुपा
होती है सहनशील
प्रकृति की प्रकृति
दबा लेती है वह
मन में उठते ज्वालामुखी को
नहीं चाहती वह
मानव सभ्यता का विनाश
लेकिन गुजर जाता है जब
पानी सिर से ऊपर
नहीं रोकता मनुष्य
प्रकृति विरोधी कुकर्मों को
करता जाता है जब मनुष्य
विकास के नाम पर विनाश
जीवनदायिनी प्रकृति का
धारण करती है प्रकृति
रुप तब दुर्गा का
उठाती है शस्त्र
दण्ड देने के लिए
प्रकृति के विनाशकों को
तिकङमबाजों को।
आता है तब जलजला
कांप उठती है पृथ्वी
लहरें उठती हैं सागर में
फट पङते हैं पर्वत
जला देती है पवन
कर देती है सफाया
ले लेती है अपने आगेश में
प्रकृति के विनाशकों को
पाठ पढाती है प्रकृति
अपने विनाशकों को
मत करो मेरा विनाश
मुझमें भी हैं प्राण
मैं भी लेती हूँ साँस
एक मनुष्य की तरह
जुङी है मुझसे ही
मानव सभ्यता की आस
मैं जब तक रहुँगी
रहेगी मानव सभ्यता तब तक
करोगे अगर तुम मेरा विनाश
सोच लेना फिर
हो जाएगा विनाश
मानव सभ्यता का भी
मार रहे हो तुम कुल्हाङी
खुद अपने ही पैरों पर
नहीं बचोगे तुम भी
करके मेरा विनाश
बचानी है अगर मानव सभ्यता
करो मेरा भी रक्षण।
.
(मौलिक व अप्रकाशित)
- सतवीर वर्मा 'बिरकाळी'
Comment
आदरणीय सतबीर जी आपका हार्दिक आभार कि आपने मेरे कहे को मान दिया।
सादर!
आदरणीय सतवीर जी आपने विषय बहुत अच्छा चुना! आपके इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई! कुछ समय और देना चाहिए था रचना को।
इस पंक्ति का अर्थ स्पष्ट करने का कष्ट करें। //भावनाएँ प्रकृति में भी//?
सादर!
प्रकृति से मनमानी ही तो विनाश का कारण बनती है जो पूर्णतः स्पष्ट है प्रस्तुति में बधाई
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online