आज मैं जिस परिस्थिति में हूँ वहां पर खुद को एक दोषी के रूप में देख रहा हूँ ! मेरे पेट में दर्द बढ़ रहा है ! हस्पताल वाले मुझे सांत्वना दे रहे हैं कि आप चिंता न करिए अभी थोड़ी देर में ही आपका ऑपरेशन हो जायेगा और आप सही सलामत हो जायेंगे ! मैं उनको कह रहा हूँ की मुझे ऑपरेशन से बहुत डर लग रहा है ! तभी एक नर्स ने मुझे बताया कि डरने की कोई बात नहीं है आपका ऑपरेशन निशा शर्मा करेंगी जो की जानी - मानी डॉक्टर हैं ! उनके आज तक सभी ऑपरेशन सफल हुए हैं ! ये नाम सुनकर ही मेरे होश उद्द गए और मैं अपने अतीत में चला गया !
निशा कोई और नहीं मेरी ही संतान थी लेकिन मैं बेटे की चाह में अँधा हो गया था और मैंने अपनी पत्नी मनीषा और बेटी निशा को घर से बाहर निकाल दिया था ! क्यूंकि मेरी पत्नी ने एक बेटी को जन्म दिया था और अब वो दुबारा माँ नहीं बन सकती थी ! मैंने दूसरी शादी कर ली थी और दूसरी पत्नी ने एक बेटे को जन्म दिया ! आज वही बेटा मुझे यहाँ हस्पताल में देखने तक नहीं आया क्या पता कहाँ किस जेल में बंद होगा क्यूंकि मेरा बेटा गलत संगत में पड़ गया और गलत काम करने लगा ! मेरा नाम रौशन करने की जगह मिटटी में मिला दिया ! जिसे मैं कुल का दीपक समझ रहा था आज उसी ने कुल की लाज को जलाकर राख कर दिया !
मैं ये सब सोच ही रहा था की डॉक्टर यानि निशा ने कमरे में प्रवेश किया और कहा कि अभी हम आपका ऑपरेशन करेंगे और आप बिलकुल ठीक हो जायेंगे ! आप चिंता ना कीजिये ! मैं चुपचाप उसकी तरफ देखता रहा कैसे कहता कि मैं तो तुम्हारा गुनाहगार हूँ और आज तुम ही मुझे जीवन दान दोगी ! मैं अन्दर ही अन्दर शर्म और आत्म गल्लानी में डूबा हुआ था ! मुझे O.T में शिफ्ट कर दिया नर्स ने मुझे इंजेक्शन दिया जिसका असर हो रहा था धीरे धीरे मैं सुन्न हो गया और निशा अपनी टीम के साथ मेरा ऑपरेशन करने लगी ! मुझे नींद आ गयी थी और मैं सो गया था !
जब मैं जगा तो देखा की मेरा दर्द बिलकुल गायब है ! मेरी दूसरी पत्नी बाहर बैठी है ! मेरी नज़रें किसी को खोज रही हैं ! तभी एक नर्स ने कमरे में प्रवेश किया और पूछा की आप अभी कैसा महसूस कर रहे हैं ? और मैंने सोचते हुए ही जवाब दिया कि मैं शर्मसार हुआ जा रहा हूँ ! नर्स चौकते हुए बोली कि माफ़ कीजियेगा सर मैं कुछ समझी नहीं ! तभी मेरा ध्यान भंग हुआ ! मैंने कहा की मैं अभी बिलकुल ठीक हूँ ! मुझे कब तक यहाँ रहना होगा ? नर्स बोली की बस जैसे ही डॉक्टर निशा आ जाये और वो आपका चेक अप कर ले फिर हम आपको डिस्चार्ज कर देंगे !
करीब एक घंटे बाद डॉक्टर निशा आई और उसने बड़े ही प्यार से पूछा की अभी आप कैसा महसूस कर रहे हैं ? मैंने कहा - मैं अभी ठीक हूँ ! लेकिन मुझे अब सीने में एक बोझ सा महसूस हो रहा है ! निशा ने कहा - आप ज्यादा मत सोचिये और अच्छे से अपना ध्यान रखिये आपको कोई भी तकलीफ हो तो आप मुझे कभी भी फोन कर सकते हैं और उसने अपना कार्ड मुझे थमा दिया ! मैंने निशा को रोकते हुए कहा - मैं तुम्हारा गुनाहगार हूँ क्या तुम मुझे माफ़ कर सकती हो ? निशा चौंक गयी और बोली कि ये आप क्या कह रहे हैं ?
मैंने कहा - हाँ बेटी ! मैं ही तुम्हारा अभागा बाप हूँ जिसने तुमको और तुम्हारी माँ को घर से सिर्फ इसीलिए निकाल दिया की उसने तुम्हे पैदा किया ! और मैं तो बेटा चाहता था !
निशा ने मेरी तरफ देखा और कहा - अच्छा तो आप हैं ! लेकिन मैं आपका शुक्र अदा करती हूँ की आपने मुझे और मेरी माँ को घर से निकाल दिया ! क्यूंकि जब मुझे पता चला कि मेरी माँ से उसका घर सिर्फ इसीलिए छूटा है की उन्होंने मुझे जन्म दिया था तो मैंने उसी दिन ठान लिया था कि मैं अपने पैरों पर खड़ी होउंगी और एक दिन आपसे जरुर मिलूंगी तब शायद आपको अहसास हो की बेटी भी एक पिता का नाम रौशन कर सकती है ! लेकिन देखिये समय ने ही आपको मुझसे मिला दिया ! मेरी माँ ने मुझे बेटा बनाकर ही पाला है और मैं अपनी माँ के प्रति बेटे का हर फ़र्ज़ पूरा करुँगी !
मैं पहले ही शर्म से झुका जा रहा था अब क्या कहूँ ! धन्यवाद भी किन शब्दों से और किस मुंह से ? मैंने कहा की बेटी मैं ही पागल था जो समझ न सका लेकिन आज मुझे अपनी गलती का अहसास है ! मुझे मेरे बेटे ने जो जिल्लत दी है उससे अब मैं समझ गया हूँ की कुल का गौरव जरुरी नहीं बेटा ही बढ़ाये एक बेटी भी बढ़ा सकती है ! तुम मुझे माफ़ भी कर दोगी तो भी मैं पश्चाताप की अग्नि में जलता ही रहूँगा ! मुझे अपने आदमी होने का जो दंभ था उसे ने ही मुझे डस लिया था ! मैं जिन्दा था लेकिन मुझे अपने जीवन का कोई औचित्य नहीं लग रहा था ! मैं एक गुनाहगार था और अब एक गुनाहगार की जिंदगी ही जियूँगा !
Comment
एक सोद्येश्य कथा के लिए हृदय से बधाई.
आदरणीय गणेश जी , आदरणीय विजय निकोरे जी एवं दिनेश पारीक जी ... बदलाव हो रहे हैं समाज में और भी होंगे तब शायद ये दर्द थम जाये ... लेकिन अभी ये दर्द कहीं न कहीं कायम है समाज में ! आप सभी का हार्दिक धन्यवाद आपने रचना को समय दिया और हौसला बढाया ..
डॉ प्राची .. कहा गया है अहंकार के वश होकर ही रवां का अंत हुआ था .. अहंकारी लोगो का ऐसा ही हश्र होता है ! सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद...
राजेश कुमारी जी कहानी को समय देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद...
डॉ अजय खरे जी हौसलाफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया ...
इस क्षेत्र में परिवर्तन लाने का दायित्व मुख्यता हम पुरुषों पर है।
समाज को सामयिक संदेश के लिए धन्यवाद।
विजय निकोर
आदरणीया प्रवीण मलिक जी इस विषय पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है फिर भी बेटों और बेटियों में भेद भाव पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुआ, हां धीरे धीरे कमी जरुर आई है, कहानी शिक्षाप्रद है और सन्देश देने में सफल है , बधाई स्वीकार करें ।
बहुत मर्म स्पर्शी कहानी... बेटों की चाह और बेटियों को दुत्कार.. कितनी जिंदगियां तबाह होती है, कठिन रास्तों से गुज़रती है, क्या क्या सहती हैं, पता नहीं कैसा झूठा अहंकार है पुरुषत्व का?
हार्दिक बधाई इस कहानी पर.
बहुत मार्मिक किंतु एक सीख देती हुई बढ़िया कहानि हार्दिक बधाई आपको
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online