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पुकार 

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साहित्य के सिपाहसालारों
धार लेखनी क्यों पडी मंद 
हाहाकार मचा चहुँ ओर 
समर भूमि में छिड़ा है द्वन्द 
यूँ ही अग़र सोते रहे 
लिखेगा कौन इतिहास तुम्हारा 
बेवजह तुमको ढ़ोते रहे
बदनाम होगा नाम हमारा 
इतिहास  तुम्हारा ऐसा न था
रन में वीरों को सींचा था  
लिखते कैसे तुम प्रणय गीत
बैरी हुआ जब अपना मीत
सोने वाले तुम कभी न थे
रोने वाले तुम कभी न थे 
मत रेंगो तुम अब पड़े पड़े   
मौन रहो   अब खड़े खड़े 
दुश्मन का न हो पूरा  सपना 
उठाओ शीघ्र गांडीव अपना 
 
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 
२३-१२-२०१२  

Views: 544

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 27, 2012 at 5:13pm

साहित्यिक तकनिकी पर यह रचना भले ही बेकार हो पर समय की मांग पर मुख्य प्रष्ट पर स्थान मिलता तो अच्छा होता 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 27, 2012 at 5:11pm

आदरणीय अशोक जी, 

सादर 

हमेशा टूटी हैं और अब भी टूटेंगी. 

आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 27, 2012 at 5:10pm

आदरणीय भ्रमर जी, सादर 

ऐसा ही होगा. देर या सवेर 

आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 27, 2012 at 5:09pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, 

सादर 

आपने यदि मुड के देखा होता तो मैं ठीक आपके पीछे ही था और रहूँगा. 

आभार 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 27, 2012 at 5:07pm

आदरणीय बाग़ी जी, 

सादर 

आपने द्रष्टि डाली .

आभार 

हिम्मत बढ़ी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 27, 2012 at 5:06pm

स्नेही अनंंत जी 

आभार. 

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 26, 2012 at 6:16pm

आदरणीय प्रदीप जी सादर, साहित्यकारों कि तलवारें तो खूब चल रही हैं किन्तु यह विआयपी सुरक्षा कि दीवारों को नहीं तोड़ पा रही है

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on December 25, 2012 at 10:40pm

सोने वाले तुम कभी न थे

रोने वाले तुम कभी न थे 
मत रेंगो तुम अब पड़े पड़े   
मौन रहो   अब खड़े खड़े 
दुश्मन का न हो पूरा  सपना 
उठाओ शीघ्र गांडीव अपना 
बहुत सुन्दर जज्बात आदरणीय कुशवाहा जी ..काश लोग इस रचना की गंभीरता को समझें जागें गांडीव उठायें तो आनंद और आये ...
भ्रमर 5 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 25, 2012 at 12:39pm

जब जब देश में समाज में इस तरह का  प्रतिकूल वातावरण बना तब तब लेखकों की कलम की धार चली इतिहास गवाह है उसी जोश और भावनाओं का आह्वान करती एक औज  पूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई इस पुकार में हमें शामिल समझिये


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 25, 2012 at 10:48am

आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी, साहित्यकारों को उनका कर्त्तव्य स्मरण कराती हुई एक अच्छी रचना , बधाई हो |

कृपया ध्यान दे...

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