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जीवन तुझसे एक वर माँगू

जीवन तुझसे एक वर माँगू

पाप पुण्य से दूर 

जीवन की समझ माँगू 

एकाकी अगर सत्य हो तो 

तथागत बनने का वर माँगू

आवेश ही एक मात्र  मार्ग हो तो 

दुर्योधन का आवेश पाऊँ

क्षमा ही ध्येय हो तो 

युधिष्ठिर का मन पाऊँ 

समर्पण ही अगर सत्य हो तो 

समर्पण की धुरी पर जो कर्ण पिसा 

मैं भी समर्पित हूँ 

उपेक्षा अगर सत्य हो तो 

एकलव्य सा ध्यान चाहूँ

और 

अगर केशव की वाणी एक मात्र सत्य हो  तो 

चिर शांत हो अर्जुन बन जाऊं

जीवन तुझसे एक वर  माँगू

पाप पुण्य से दूर 

जीवन की समझ  माँगू 

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Comment

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 3, 2012 at 4:24pm

अगर केशव की वाणी एक मात्र सत्य हो तो
चिर शांत हो अर्जुन बन जाऊं...............

वाह वाह, बहुत ही सुन्दर रचना, एक एक शब्द अपने गहन अर्थ से इस कविता को उचाई प्रदान कर रहे है, बहुत खूब, बधाई स्वीकार करें |

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 3, 2012 at 6:21am

आदरणीय
       सादर, बहुत सुन्दर रचना, जीवन को सफल बनाने के लिए राह चुनने की दुविधा का सफल चित्रण. बधाई.

Comment by arunendra mishra on June 2, 2012 at 12:55am

रेखा जी ...सराहना हेतु धन्यवाद् 

Comment by Rekha Joshi on June 1, 2012 at 8:16am

जीवन तुझसे एक वर  माँगू

पाप पुण्य से दूर 

जीवन की समझ  माँगू ,arunendre ji ,sundr abhivykiti,badhai 

Comment by arunendra mishra on June 1, 2012 at 12:58am

महिमा जी ....आप के सतत उत्साहवर्धन से ही रचनाओ को प्रेषित करने की हिम्मत जुट पाई ....धन्यवाद् ....!!

Comment by arunendra mishra on June 1, 2012 at 12:54am

श्री सौरभ जी ....आप के सतत आशीर्वाद की अपेक्षा है...

Comment by arunendra mishra on June 1, 2012 at 12:52am

अरुण जी ..सराहना हेतु धन्यवाद् ....महामानव नहीं  अपितु  रोजमर्रा के जीवन चक्र  में सामान्य मानव के व्यवहार की समीक्षा की कोशिश की है ... 

Comment by MAHIMA SHREE on May 31, 2012 at 9:38pm

वाह!!!! वाकई में अरुणेद्र जी आपकी रचना उच्च कोटि की है  ..बधाई स्वीकार करे  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 31, 2012 at 9:25pm

भाई अरुणेंद्र जी, आपकी वैचारिकता सनातन पारंपरिक सोच का परावर्तन है. रचना पाठक का ध्यान खींचने में सफल है.  पौराणिक बिम्बों का प्रयोग सटीक तरीके से हुआ है, इस हेतु आप बधाई के पात्र हैं.  जीवन को दो आवृतियों के साथ इंगित करना अच्छा लगा.

बधाई स्वीकार करें

Comment by Arun Sri on May 31, 2012 at 8:25pm

वाह ! बहुत  बढ़िया मांग है आपकी ! लगता है मानव से महामानव बनने का इरादा है ! आपको पहली बार पढ़ रहा हूँ ! बहुत प्रभावित किया आपने !

कृपया ध्यान दे...

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