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गणतन्त्र के दोहे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

विकृत कर गणतंत्र का, राजनीति ने अर्थ
कर दी है स्वाधीनता, जनता के हित व्यर्थ।१।
*
तंत्र प्रभावी हो गया, गण को रखकर दूर
कह सेवक स्वामी  बने, ठाठ करें भरपूर।२।
*
आयेगा  गणतंत्र  में, अब तक  यहाँ  वसंत
तन्त्र बनेगा कब यहाँ, बोलो गण का कन्त।३।
*
भूखे को रोटी नहीं, न ही हाथ को काम
बस इतना गणतन्त्र में, गाली खाते राम।४।
*
द्वार खोलती  पञ्चमी, कह आओ ऋतुराज
साथ पर्व गणतंत्र का, सुफल सभी हों काज।५।
*
लोकतंत्र  के  पर्व   सह,   आया  पर्व  वसन्त
क्या होगा अब देश से, दुख पतझड़ का अन्त।६।
*
इक  वासन्ती  पञ्चमी, एक  दिवस  गणतन्त्र
दोनों मिलकर फूँक दो, जन के सुख का मन्त्र।७।
*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 1, 2023 at 3:17pm

आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on January 30, 2023 at 6:36pm

वाह उत्तम दोहे आदरणीय धामी जी...

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