For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : यही इक बात मैं समझा नहीं था

बह्र : 1222     1222     122

यही इक बात मैं समझा नहीं था
जहाँ में कोई भी अपना नहीं था

किसी को जब तलक चाहा नहीं था
ज़लालत क्या है ये जाना नहीं था

उसे खोने से मैं क्यूँ डर रहा हूँ
जिसे मैंने कभी पाया नहीं था

न बदलेगा कभी सोचा था मैंने
बदल जाएगा वो सोचा नहीं था

उसे हरदम रही मुझसे शिकायत
मुझे जिससे कोई शिकवा नहीं था

उसी इक शख़्स का मैं हो गया हूँ
वही इक शख़्स जो मेरा नहीं था

कभी इक वक़्त था जब ख़ुश था मैं भी
मैं जैसा हूँ अभी वैसा नहीं था

नहीं मानी कभी इक बात अपनी
मैं अपनी एक भी सुनता नहीं था

मुहब्बत अब तिजारत बन गई है
सुना तो था मगर देखा नहीं था

तुम्हारी बेरुख़ी ने सिल दिए लब
नहीं तो कहने को क्या क्या नहीं था

यही इक बात उसको खल गई थी
मैं सहरा था मगर प्यासा नहीं था

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 737

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mahendra Kumar on November 3, 2022 at 2:31pm

शुक्रिया आदरणीय Zaif जी। आभारी हूँ।

Comment by Zaif on October 30, 2022 at 2:34pm

बहुत खूब ग़ज़ल

Comment by Mahendra Kumar on October 20, 2022 at 6:42pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, दिल से आभारी हूँ। बहुत शुक्रिया।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 19, 2022 at 10:02pm

आ. भाई महेंनद्र जी, सादर अभिवादन। बहुत खूबसूरत गजल हुई है । हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by Mahendra Kumar on October 17, 2022 at 7:33pm

आदरणीय अमीरुद्दीन जी, यदि किसी टिप्पणी में किसी का नाम न दिया गया हो तो मुझे नहीं लगता कि उसे अपने ऊपर समझकर उस पर प्रतिक्रिया देने की ज़रूरत है। आदरणीय समर कबीर सर इस मंच के वरिष्ठ सदस्य हैं और हमेशा से इस मंच पर अपनी निःस्वार्थ सेवाएँ देते रहे हैं जिसे आपने भी स्वीकार किया है। बाक़ी ग़ज़ल में आपकी शिरकत और अमूल्य सुझावों का मैं हृदय से आभारी हूँ। बहुत शुक्रिया। सादर।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 17, 2022 at 2:03pm

//किसी सदस्य के किसी वक्तव्य को उठाकर कुछ कहना मुझे नहीं लगता कि उचित है।//

आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, जिन वरिष्ठ और प्रतिष्ठित सदस्य का यह 'कीड़े निकालने' वाला वक्तव्य है, इस मंच पर उनकी बात को नज़र-अंदाज़ करना, उसका संज्ञान न लेना कम से कम नये सीखने वालों के लिए तो बिल्कुल भी आसान नहीं है, क्योंकि मंच पर उनकी सेवाओं और योगदान का बहुत बड़ा प्रभाव है, अगर ऐसा नहीं होता तो अनावश्यक रूप से इस प्रकार का वक्तव्य टिप्पणी में नहीं होता... फिर भी आप ने सुझाव पेश करने की इजाज़त दी है तो मैं आपका तह-ए-दिल से मशकूर हूँ, दिये गये सुझावों से सहमत होना या असहमत होना आपका विशेषाधिकार है। 

'तुम्हारी बेरुख़ी ने सिल दिए लब'.... इस मिसरे में आया 'सिल' शब्द को अगर 'सी' से बदल दिया जाए तो मेरे विचार में ज़बान की सलासत और रवानी बहतर हो जाएगी। इसी तरह... 

'यही इक बात उसको खल गई थी'.... इस मिसरे में 'खल गई' को 'चुभ रही' किया जाना मेरे नज़्दीक बहतर होगा। 

अगर आप सहमत न हों तो पाठकीय सुझाव मात्र समझ कर नज़र अंदाज़ कर दीजिएगा। 

Comment by Mahendra Kumar on October 17, 2022 at 10:26am

दिल से आभारी हूँ आदरणीय बृजेश जी। बहुत शुक्रिया।

Comment by Mahendra Kumar on October 17, 2022 at 10:26am

आदरणीय अमीरुद्दीन जी, ग़ज़ल में आपकी शिरकत और ज़र्रा-नवाज़ी का बहुत शुक्रिया। चूँकि यह मंच सीखने-सिखाने का मंच है इसलिए किसी भी तरह के सुझावों का हमेशा ही स्वागत है। हाँ, किसी सदस्य के किसी वक्तव्य को उठाकर कुछ कहना मुझे नहीं लगता कि उचित है। सादर।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 16, 2022 at 4:47pm

वाह आदरणीय महेंद्र जी...बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई...बधाई

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 14, 2022 at 4:12pm

आदरणीय महेंद्र कुमार जी आदाब, बहुत ख़ूब ग़ज़ल हुई है, दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं।

अख़ीर के दोनों अशआर बहतर करने के लिए मिसरा-ए-ऊला में सुधार की गुंजाइश है,अगर इसे 'कीड़े निकालना' न समझा जाए तो मश्विरा अर्ज़ करने की जसारत करूँ। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"लोग समझते शांति की, ये रचता बुनियाद।लेकिन बचती राख ही, सदा युद्ध के बाद।८।.....वाह ! यही सच्चाई है.…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"दोहे******करता युद्ध विनाश है, सदा छीन सुख चैनजहाँ शांति नित प्रेम से, कटते हैं दिन-रैन।१।*तोपों…"
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"स्वागतम्"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"अनुज बृजेश , आपका चुनाव अच्छा है , वैसे चुनने का अधिकार  तुम्हारा ही है , फिर भी आपके चुनाव से…"
yesterday
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"एक अँधेरा लाख सितारे एक निराशा लाख सहारे....इंदीवर साहब का लिखा हुआ ये गीत मेरा पसंदीदा है...और…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"//मलाई हमेशा दूध से ऊपर एक अलग तह बन के रहती है// मगर.. मलाई अपने आप कभी दूध से अलग नहीं होती, जैसे…"
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय जज़्बातों से लबरेज़ अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। मतले पर अच्छी चर्चा हो रही…"
Thursday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 179 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Thursday
Nilesh Shevgaonkar commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"बिरह में किस को बताएं उदास हैं कितने किसे जगा के सुनाएं उदास हैं कितने सादर "
Thursday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"सादर नमन सर "
Thursday
Mayank Kumar Dwivedi updated their profile
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service