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सदा कीजिए वानिकी, मिलती इससे छाँव।
नगर प्रदूषण से  रहित, प्यारा  लगता गाँव।।
*
जन जीवन है पेड़ से, नहीं पेड़ को काट।
पेड़ बिना है यह  धरा, बस  रेतीला घाट।।
*
अपने दम पर वानिकी, जीवित रखे पहाड़।
बची नहीं  जो  वानिकी, धरती  बने उजाड़।।
*
इन से ही सुन्दर लगे, इस धरती का रूप।
पेड़ बहुत हैं  काम  के, हरते  तपती धूप।।
*
वन सिखलाते हैं सदा, जीवन की हर रीत।
पुरखों ने सच ही कहा, इनको अपना मीत।।
*

पर्वत पथ तट जो रहे, लम्बी घनी कतार
दुर्घटना  में  सच  बने, रक्षा  का  आधार।।

*
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment by vijay nikore on March 30, 2022 at 3:40pm

आ० मित्र लक्ष्मण जी, बहुत ही सुन्दर दोहे। आपकी रचना के भाव सुन्दर, ताज़गी-भरे ही होते हैं।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 27, 2022 at 1:18pm

वानिकी पर पठनीय दोहों के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. 

सदा कीजिए वानिकी, मिलती इससे छाँव।
नगर प्रदूषण से  रहित, प्यारा  लगता गाँव।।...   .. बिना प्रदूषण हो नगर, लगता सुखकर गाँव. .. इस पद के अर्थबोध पर अवश्य मनन करें आदरणीय

शुभातिशुभ

Comment by Sushil Sarna on March 21, 2022 at 1:08pm
वाह बहुत सुंदर और सार्थक दोहावली सर । हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी जी

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