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लघु से लघुतम बात को, जो देते हैं तूल।
ये तो निश्चित जानिए, मन में उनके शूल।१।
*
बनते बाल दबंग अब, पढ़ना लिखना भूल।
हुए नहीं क्यों सभ्य वो, जाकर नित स्कूल।२।
*
करती मैला भाल है, मद में उठकर धूल।
करे शिला को ईश यूँ, न्योछावर हो फूल।३।
*
साक्ष्य समय विपरीत पर, तजे सत्य ना मूल।
ज्यों नद सूखी  पर  हुए, एक  नहीं  दो कूल।४।
*
जलने को पथ काल का, तकना होगी भूल।
हवा कभी  होती  नहीं, सुनो  दीप अनुकूल।५।
*
कड़वी बातें तीर सी, मन में मन मत हूल।
नव जीवन को आज तो, बीती बातें भूल।६।
*
कहने को सब पेड़ हैं, पीपल आम बबूल।
कुछ देते फल फूल हैं, कुछ दें केवल शूल।७।
**


मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 30, 2021 at 1:41pm

आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 30, 2021 at 11:19am

आदरणीय धामी जी बहुत सुन्दर दोहे हुए...सादर बधाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 23, 2021 at 10:20am

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साह वर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।

इंगित दोहे में "भी" शब्द छूट गया है। इसे यूँ पढ़ियेगा - "जाकर भी नित स्कूल "

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 23, 2021 at 10:17am

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और स्नेह के लिए हार्दिक आभार।

इंगित दोहे में स्कूल की मात्रा 3 ली है। इसमें "भी" शब्द छूट गया है। 

 इसे यूँ पढ़ियेगा - "जाकर भी नित स्कूल "

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 23, 2021 at 10:11am

आ. भाई नरेंन्द्र जी, हार्दिक धन्यवाद।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 22, 2021 at 5:10pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई स्वीकार करें, आदरणीय समर कबीर साहिब द्वारा इंगित दोहे के उक्त चरण में मात्राएं कदाचित कम हैं, देखियेगा।  सादर। 

Comment by Samar kabeer on December 22, 2021 at 2:55pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,अच्छे दोहे रचे आपने, बधाई स्वीकार करें।

'जाकर नित स्कूल'--इसमें 'स्कूल' शब्द की कितनी मात्रा ली है आपने?

Comment by narendrasinh chauhan on December 22, 2021 at 10:40am

khub sundar sir

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