For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

221 - 1222 - 221 - 1222

ये दर्द मिरे दिल के कब दिल से उतरते हैं 

दिल में ही किया है घर सजते हैं सँवरते हैं 

आती हैं बहारें तो खिलते हैं उमीदों से 

गुल-बर्ग मगर फिर ये मोती से बिखरते हैं 

जब टूटे हुए दिल पर तुम ज़र्ब लगाते हो

पूछो न मेरे क्या क्या जज़्बात उभरते हैं 

पैवस्त ज़माने से थे जो मेरे सीने में 

अब दर्द वही फिर से रह-रह के उभरते हैं 

देखे हैं मुक़द्दर तो बिगड़े हुए बनते भी  

तक़दीर के मारों के कब भाग सँवरते हैं 

चाहत है डराने की तुमको जो हमें सुन लो 

हम ख़ाक-नशीं बस इक अल्लाह से डरते हैं 

पहले तो बना लेते दीवाना अदाओं से  

फिर दिल में बसाने के वा'दे से मुकरते हैं 

क्या हमको दिखाएंगे राहें वो मुहब्बत की 

बचपन से इसी रस्ते हम रोज़ गुज़रते हैं

याराँ की मुहब्बत को लीजै न यूँ हल्के में

जन्नत ही नज़र आती जब बाहों में भरते हैं 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 616

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 30, 2021 at 11:42pm

जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।  सादर।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 30, 2021 at 11:21am

क्या कहने आदरणीय अमीरुद्दीन जी...बड़ी ही खूब ग़ज़ल कही..सादर

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 22, 2021 at 10:56pm

मुहतरम समर कबीर साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी तशरीफ़ आवरी पर ख़ुश आम-दीद, दाद-ओ-तहसीन और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।

//'जन्नत ही नज़र आती जब बाहों में भरते हैं '

इस मिसरे को यूँ कहें तो रवानी बढ़ जाएगी:-

'जन्नत नज़र आती है जब बाँहों में भरते हैं'//  बहतरीन मशविरा, मगर... 

मुहतरम माज़रत के साथ अर्ज़ करना है कि मेरे इस मिसरे में 'ही' मेरे जज़्बात (ख़याल) की ज़्यादा सटीक अक्कासी करता है। हालांकि आ. निलेश जी ने भी 'ही' की जगह 'है' करने का इशारा दिया था।

यहाँ मैं बताना चाहता हूँ कि मेरा कहना है कि सिर्फ़ "जन्नत ही नज़र आती है" और कुछ नहीं... 

'क्या ख़ूब कहा' और 'क्या ही ख़ूब कहा'...    'मज़ा आ गया' और 'मज़ा ही आ गया' में जो फ़र्क़ है उसी के मद्देनज़र 'ही' को लिया है। 

उम्मीद है मैं अपनी बात कह सका हूँ।  सादर। 

Comment by Samar kabeer on December 22, 2021 at 8:21pm

जनाब अमीरुद्दीन 'अमीर' साहिब आदाब, अच्छी ग़ज़ल कही आपने, बधाई स्वीकार करें ।

'जन्नत ही नज़र आती जब बाहों में भरते हैं '

इस मिसरे को यूँ कहें तो रवानी बढ़ जाएगी:-

'जन्नत नज़र आती है जब बाँहों में भरते हैं'

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 22, 2021 at 7:52pm

मुहतरम निलेश जी, दोबारा तशरीफ़ आवरी पर ख़ुश आम-दीद और ज़र्रा नवाज़ी का बहुत शुक्रिया।  सादर। 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 22, 2021 at 7:09pm

आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,

तरमीम के बाद मिसरा और निखर उठा है,
ढेरों बधाईयाँ 

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 21, 2021 at 10:02pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ने के लिए आपका शुक्रिया।  सादर। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 21, 2021 at 8:33pm

आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 20, 2021 at 9:23pm

आदरणीय निलेश शेवगाँवकर 'नूर' साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, दाद-ओ-तहसीन से नवाज़ने और इस्लाह के लिए शुक्रिया।

इस्लाह पर आपके दोनों बिन्दुओं/ बातों से सहमत हूँ, 'गुल-बर्ग सभी फिर ये मोती से बिखरते हैं' पर आपकी क्या राय है, बताइयेगा।  सादर। 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 20, 2021 at 5:45pm

आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,

अच्छी ग़ज़ल हुई है .. बधाई स्वीकार करें..
पत्तों के टूटने कि तुलना मोती के बिख़रने से होना अटपटा लगा 

.

यारां की मुहब्बत को लीजै न यूँ हल्के में 

जन्नत है नज़र आती जब बाहों में भरते हैं ... जैसा कुछ ..फिर भी यारा. के साथ भरता है अधिक दुरुस्त होता 


.
शेष शुभ 
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

कुर्सी जिसे भी सौंप दो बदलेगा कुछ नहीं-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

जोगी सी अब न शेष हैं जोगी की फितरतेंउसमें रमी हैं आज भी कामी की फितरते।१।*कुर्सी जिसे भी सौंप दो…See More
yesterday
Vikas is now a member of Open Books Online
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Monday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम्. . . . . गुरु
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । विलम्ब के लिए क्षमा "
Monday
सतविन्द्र कुमार राणा commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"जय हो, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए सादर बधाई आदरणीय मिथिलेश जी। "
Monday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"ओबीओ के मंच से सम्बद्ध सभी सदस्यों को दीपोत्सव की हार्दिक बधाइयाँ  छंदोत्सव के अंक 172 में…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, जी ! समय के साथ त्यौहारों के मनाने का तरीका बदलता गया है. प्रस्तुत सरसी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह ..  प्रत्येक बंद सोद्देश्य .. आदरणीय लक्ष्मण भाईजी, आपकी रचना के बंद सामाजिकता के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाई साहब, आपकी दूसरी प्रस्तुति पहली से अधिक जमीनी, अधिक व्यावहारिक है. पर्वो-त्यौहारों…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी  हार्दिक धन्यवाद आभार आपका। आपकी सार्थक टिप्पणी से हमारा उत्साहवर्धन …"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी छंद पर उपस्तिथि उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार। दीपोत्सव की…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  अखिलेश कॄष्ण भाई, आयोजन में आपकी भागीदारी का धन्यवाद  हर बरस हर नगर में होता,…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service