For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- एक पत्थर है ज़िन्दगी मेरी

2122 1212 22

बस यही इक फ़रेब खा बैठा
मैं उसे  ज़िन्दगी  बना  बैठा

एक  पत्थर है  ज़िन्दगी  मेरी
उसी पत्थर से दिल लगा बैठा

धूप  अपने  शबाब  पर आई
और साया भी  दूर जा  बैठा

ख़त्म  कैसे  भला  अँधेरा  हो
एक दीपक था जो बुझा बैठा

फिर ग़ज़ल रो पड़ी सरे महफ़िल
गीत फिर ग़म भरा सुना बैठा

'ब्रज' लिए है उदासियाँ अपनी
सामने  चाँद  अनमना  बैठा

(मैलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 612

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 23, 2021 at 1:16pm

रचना पटल पे आपकी उपस्थित उत्साहवर्धक है आदरणीय समर कबीर जी...सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 23, 2021 at 1:15pm

आदरणीय अमीरुद्दीन जी आपके और आदरणीय धामी जी के भाव बहुत ही खूबसूरत हैं...आपसे पूर्णतया सहमत हूँ...आप लोगों के सुझाव को समेटते हुए कुछ सुधार की कोशिश करता हूँ...सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 23, 2021 at 1:11pm

आदरणीय धामी जी उत्साहवर्धन और आपके खूबसूरत सुझाव के लिए आपका हार्दिक आभार...सादर

Comment by Samar kabeer on December 22, 2021 at 2:43pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 21, 2021 at 9:48pm

//एक पत्थर है ज़िन्दगी मेरी

  और पत्थर से दिल लगा बैठा...पर आपकी राय दीजिएगा...//

जनाब बृजेश जी, इस शे'र को सानी मिसरे के संदर्भ में देखें तो पहले मिसरे से ये आभास होता है कि मेरी (ख़ुद की) ज़िन्दगी पत्थर जैसी नीरस है 

और सानी तो स्पष्ट कह ही रहा है कि... मुझे प्यार भी किसी अपने जैसे पत्थर दिल से हो गया है।  जबकि...

'एक पत्थर है ज़िन्दगी मेरी

उसी पत्थर से दिल लगा बैठा'  इस शे'र को सानी मिसरे के संदर्भ में देखें तो पहले मिसरे से ये आभास होता है कि एक पत्थर जैसा जड़ और नीरस इन्सान मुझे इतना पसंद है जैसे वो मेरी ज़िन्दगी हो... और शायद इसी कारण मैं उस से दिल लगा बैठा हूँ। 

आप इस बह्र में शुरूअ के 21 को 11 पर ले सकते हैं। वैसे ग़ज़ल आपकी है भाव भी आप के ही रहेंगे, आपके भाव क्या हैं ये तो आपको ही पता होगा, जो उचित समझें। वैसे... आ. धामी जी का सुझाव भी उत्तम है अगर ये आपके भावानुकूल हो तो।. सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 21, 2021 at 8:51pm

आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई। 

मेरे खयाल से ऐसा करना अधिक उचित रहेगा. 

फूल जैसी है ज़िन्दगी मेरी

और पत्थर से दिल लगा बैठा

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 21, 2021 at 8:34pm

स्वागत संग आभार आदरणीय अमीरुद्दीन जी...बिल्कुल आपसे सहमत हूँ..

एक पत्थर है ज़िन्दगी मेरी

और पत्थर से दिल लगा बैठा...पर आपकी राय दीजिएगा...

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on December 21, 2021 at 8:32pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय नीलेश जी...आपके बताए अनुसार कुछ सुधार करता हूँ...

एक पत्थर है ज़िन्दगी मेरी

और पत्थर से दिल लगा बैठा ...ये कैसा रहेगा ?

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on December 20, 2021 at 9:34pm

जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब, ख़ूबसूरत ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएं। दूसरे शे'र पर निलेश जी से सहमत हूँ, एक विकल्प और देखें - 

'एक पत्थर है ज़िन्दगी मेरी

उसी पत्थर से दिल लगा बैठा'  सादर।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 20, 2021 at 5:40pm

आ. बृजेश जी 

अच्छी ग़ज़ल हुई है .. बधाई 
एक पत्थर है ज़िन्दगी मेरी
एक पत्थर से दिल लगा बैठा  इसे यूँ देखें ...
.
ज़िन्दगी मेरी हो गयी  पत्थर 
जब से पत्थर से दिल गला बैठा 
.
सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय प्रेम जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियाँ क़ाबिले ग़ौर…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ ,बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियाँ क़ाबिले…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दिनेश जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमीर जी  बहुत शुक्रिया आपका हौसला अफ़ज़ाई के लिए और बेहतर सुझाव के लिए सुधार करती हूँ सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय चेतन जी बहुत शुक्रिया हौसला अफ़ज़ाई के लिए आपका मक़्त के में सुधार की कोशिश करती हूं सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी बेहतर इस्लाह ऑयर हौसला अफ़ज़ाई के लिए शुक्रिया आपका सुधार करती हूँ सादर"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल हुई आपकी बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी और अमीर जी के सुझाव क़ाबिले…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी नमस्कार बहुत ही लाज़वाब ग़ज़ल हुई बधाई स्वीकार कीजिये है शेर क़ाबिले तारीफ़ हुआ ,गिरह भी…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय अमित जी आदाब, और प्रस्तुति तक पहुँचने के लिए आपका आपका आभारी हूँ। "बेवफ़ा है वो तो…"
1 hour ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
" आदरणीय मुसाफिर जी नमस्कार । भावपूर्ण ग़ज़ल हेतु बधाई। इस्लाह भी गुणीजनों की ख़ूब हुई है। "
2 hours ago
DINESH KUMAR VISHWAKARMA replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीया ऋचा यादव जी नमस्कार । ग़ज़ल के अच्छे प्रयास हेतु बधाई।"
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय संजय शुक्ला जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ। तेरे चेहरे पे शर्म सा क्या…"
2 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service