For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल-मचलेंगे जज़्बात हमारे

221--1221--1221--122

1

कैसे न सनम मचलें'गे जज़्बात हमारे

महफ़िल में अगर गाएंगे नग़्मात हमारे

2

दुनिया का वतीरा भी निभा सकते हैं लेकिन

इन सबसे अलहदा हैं ख़यालात हमारे

3

ईमान की बाज़ार में कीमत नहीं कुछ भी

किस तर्ह से फिर सुधरेंगे हालात हमारे

4

जल जल के बुझी जाती है उम्मीदों की शम्मा

दम तोड़ते हैं साथ सवालात हमारे

5

माज़ी को सिरहाने तले रख सोचते हैं हम

क्यों एक से रहते नहीं दिन रात हमारे

6

ताउम्र तड़पते रहे उसके लिए 'निर्मल'

मिलते नहीं थे जिससे ख़यालात हमारे

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 701

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rachna Bhatia on March 17, 2021 at 12:38pm

आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार।जी सर्,इस तरह से सुधार कर लेती हूँ। बेहद शुक्रिय:।

Comment by Samar kabeer on March 17, 2021 at 11:12am

'जल जल के बुझी जाती है उम्मीदों की शम्मा'

इस मिसरे को यूँ कह सकती हैं

'जल जल के बुझी जाती है उम्मीदों की शमएँ'

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 17, 2021 at 8:21am

आ. रचना बहन, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई। 

Comment by Rachna Bhatia on March 15, 2021 at 9:38pm

आदरणीय समर कबीर सर् सादर नमस्कार।सर् ग़ज़ल तक आने के लिए तथा इस्लाह देने के लिए आपकी आभारी हूँ।जी,सर् आपके द्वारा बताए गए सुधार फेयर में कर लेती हूँ।

सर् कहीं शम्अ को शम्मा भी पढ़ा था इसीलिए इस्तेमाल कर लिया। आगे से ध्यान रखूँगी।

क्या "उम्मीद की शम्मा" को हटाकर "उम्मीद के दीपक" लिख सकते हैं सर्।

सादर।

Comment by Samar kabeer on March 15, 2021 at 8:39pm

मुहतरमा रचना भाटिया जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।

'कैसे न सनम मचलें'गे जज़्बात हमारे

महफ़िल में अगर गाएंगे नग़्मात हमारे'

मतला यूँ कहना उचित होगा:-

'कैसे न कहो मचलेंगे जज़्बात हमारे

महफ़िल में अगर गाएँ वो नग़मात हमारे'

'जल जल के बुझी जाती है उम्मीदों की शम्मा'

ये मिसरा बह्र में नहीं,क्योंकि "शम'अ" का वज़्न 21 होता है, कई बार बताया जा चुका है

'माज़ी को सिरहाने तले रख सोचते हैं हम'

इस मिसरे को उचित लगे तो यूँ कहें:-

'माज़ी को सिरहाने प रखे सोच रहे हैं'

बाक़ी शुभ शुभ ।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 13, 2021 at 10:14pm

//सिरहाने का वज़्न 122 लिया है।//  तब ठीक है, रचना जी। 

Comment by Rachna Bhatia on March 13, 2021 at 6:43pm

आदरणिय अमीरुद्दीन'अमीर'जी नमस्कार। ग़ज़ल तक आने के लिए आभार। आदरणीय सिरहाने का वज़्न 122 लिया है।सादर ‌

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on March 13, 2021 at 4:30pm

 मुहतरमा रचना भाटिया 'निर्मल' जी आदाब, ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता हूँ।

'माज़ी को सिरहाने तले रख सोचते हैं हम'    इस मिसरे की बह्र चेक कर लें। सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"सुलगता रहा इक शरर धीरे धीरे जलाता रहा वो ये घर धीरे धीरे मचाया हवाओं ने कुहराम ऐसा गिरा टूट कर हर…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"रदीफ़ क़ाफ़िया में तो ऐसा कोई बंधन नहीं है इसलिये आपका प्रश्न स्पष्ट नहीं है। "
6 hours ago
Poonam Matia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"नमस्कारक्या तरही मिसरे में लिंग अनुसार बदलाव करसकते हैंक्यूंकि उसे मैं अपने अनुसार प्रयोग…"
7 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"स्वागत है।"
7 hours ago
Tilak Raj Kapoor commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"यह तरही के लिए है या पृथक से?"
7 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-180
"स्वागतम"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )

११२१२     ११२१२       ११२१२     ११२१२  मुझे दूसरी का पता नहीं ***********************तुझे है पता तो…See More
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"आदरणीय रवि भाई , वाह ! बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है , दिली बधाई स्वीकार करें "
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय  निलेश भाई  हमेशा की तरह अच्छी ग़ज़ल हुई है,  हार्दिक  बधाई वीकार…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण  भाई , अच्छी ग़ज़ल कही , बड़ी कठिन रदीफ़ चुनी आपने , हार्दिक  बधाई आपको "
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करेगी सुधा मित्र असर धीरे-धीरे -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , बधाई स्वीकार करें मक्ता शायद अपनी बात नहीं कह पा रहा…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति हमेशा प्रेरणा दाई  होती है , ग़ज़ल के कुछ शेर आपको अच्छे…"
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service