For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काँटों से बिँध फूल को आते - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२२२/२२२२/२२२२/२२२


शीशे को भी  रखने  वाले  पत्थर लोगों नहीं रहे
‌यौवन के अब पहले  जैसे  तेवर  लोगों नहीं रहे।१।
**
ढूँढा करते  हैं  गुलदस्ते  तितली  भौंरे  आज यहाँ
‌काँटों से बिँध फूल को आते मधुकर लोगों नहीं रहे।२।
**
केवल आँच जला देती है सावन में भी देखो अब
ज्लाला से लड़ बचने वाले वो घर लोगों नहीं रहे।३।
**
एक तो पहले से मुश्किल थी ये कोरोना क्या आया
‌रोज कमा खाने के भी अब अवसर लोगों नहीं रहे।४।
**
एक समय था दुख से लड़ने चौपालें सज जाती थीं
खुशियों में भी आज साथ के मन्जर लोगों नहीं रहे।५।
**
देख के हस्ती या दौलत को होते अब तैयार यहाँ
‌जान बचाने वाले सबकी अफसर लोगों नहीं रहे।६।
**
जातधर्म को छोड़ो भी तो धनदौलत या रुतवे हैं
कहने भर को ऊँच नीच के अन्तर लोगों नहीं रहे।७।
**
टाट फटे फुटपाथों के या मखमल वाले महलों में
नींद की बातों से अनजाने बिस्तर लोगों नहीं रहे।८।
*
मौलिक-अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

Views: 511

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 28, 2020 at 6:39pm

आ. भाई आशीष जी सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व सराहना के लिए आभार ।

Comment by आशीष यादव on August 26, 2020 at 12:11am

एक उम्दा ग़ज़ल हुई है। सच्चे भावों को पिरोया है आपने। बधाई स्वीकार कीजिए।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 24, 2020 at 7:19am

आ. भाई बृजेश कुमार जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 24, 2020 at 7:16am

आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार । आशा है भविष्य में भी स्नेह मिलता रहेगा । 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 24, 2020 at 7:12am

आ. भाई समर कबीर जी, सादर अभिवादन ।गजल पर आपकी उपस्थिति से लेखन सफल हुआ । स्नेह के लिए आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 24, 2020 at 7:10am

आ. डिम्पल जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए आभार ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 22, 2020 at 10:08am

बढ़िया ग़ज़ल हुई आदरणीय धामी जी...

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on August 21, 2020 at 10:36pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें । सादर। 

Comment by Samar kabeer on August 21, 2020 at 3:58pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Dimple Sharma on August 21, 2020 at 10:52am

आदरणीय लक्ष्मण धामी'मुसाफिर'जी नमस्ते, खुबसूरत ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें आदरणीय,तीसरा शेर कमाल है बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें आदरणीय।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service