उल्फ़त पर दोहे :
सब लिखते हैं जीत को, मैं लिखता हूँ हार।
हार न हो तो जीत का, कैसे हो शृंगार।।१
अद्भुत है ये वेदना, अद्भुत है ये प्यार।
दृगजल जैसे प्रीत का, कोई मंत्रोच्चार।।२
क्यों मिलता है प्यार को, दर्द भरा अंजाम।
हो जाते हैं इश्क में, रुख़सत क्यों आराम।।३
हर लकीर ज़ख्मी हुई, रूठ गए सब ख़्वाब।
आँखों की दहलीज पर,करते रक़्स अज़ाब ।।४
दस्तक देते रात भर, पलकों पर कुछ ख़्वाब।
तारीकी में ज़िंदगी, लगती हसीं किताब।।५
याद अमानत बन गयी, लफ्ज़ हुए लाचार।
चिलमन पलकों की हुई, अश्कों से गुलज़ार।।६
सुर्ख़ कपोलों पर हुई, सुधियों की बरसात।
नैनों का सपना बनी,अभिसारों की रात।।७
अमिट लेख तकदीर का,बनी मिलन की रात।
स्वप्न सभी ऐसे झरे, जैसे पीले पात।।८
पहने पलकें रात भर, सपनों के परिधान।
अच्छा अब लगता नहीं, अधरों को व्यवधान।। ९
अफ़सुर्दा सी भोर है, अफ़सुर्दा सी शाम।
उनकी उल्फ़त में मिला, अश्कों का ईनाम।।१०
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय Dayaram Methani जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ, हार्दिक आभार।
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप'जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ, हार्दिक आभार।
आदरणीय Samar kabeeriजी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ, हार्दिक आभार।
आदरणीय सुशील सरना जी, अति सुंदर दोहा सृजन के लिए बधाई स्वीकार करें।
आद0 सुशील सरना जी सादर अभिवादन। अच्छे दोहे लिखे है। आद0 समर साहब की बातों का संज्ञान लीजिएगा। बधाई स्वीकारें। सादर
जनाब सुशील सरना जी आदाब,अच्छे दोहे लिखे आपने,बधाई स्वीकार करें ।
कुछ उर्दू शब्दों में नुक़्ते लगा लें ।
अंजाम।
'हो जाते हैं इश्क में, रुख़सत क्यों आराम'
इस पंक्ति में 'हो जाते' की जगह "हो जाता" कहना उचित होगा ।
'उनकी उल्फ़त में मिला, अश्कों का ईनाम'
इस पंक्ति में 'ईनाम' ग़लत शब्द है,"इनआम" कर लें,मात्रा भार एक ही होगा ।
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