दिल मेरा यह हाल देख घबराता है
शहर का अब मजदूरों से क्या नाता है।
खून पसीने से अपने था सींचा जिसको
बुरे दौर में दामन शहर छुड़ाता है।
आया संकट कोरोना का देश में जबसे
सड़कों पर लाचार मनुज दिख जाता है।
जिसने चमकाया शहरों को हो लथपथ
आज वही शहरों से फेंका जाता है।
देख दर्द होता है दिल में अब अवनीश
दुनियां को रचता क्या एक विधाता है।
मेहनत करने वाला क्यूँ दर दर भटके
क्यूँ नेता साहब सेठ ऐंठ दिखलाता है।
मौलिक एवं अप्रकाशित
अवनीश
Comment
आदरणीय अवनीश जी विल्कुल यथार्थ चित्रण किया है बहुत बहुत बधाई
जनाब अवनीश जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
एक निवेदन ये है कि रचना के साथ उसकी विधा भी लिख दिया करें,इससे रचना के बारे में कुछ कहना आसान हो जाता है ।
आ. भाई अनीश जी, अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
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