22 22 22 22
कैसी आज करोना आई
करते है सब राम दुहाई।
आना जाना बंद हुआ है,
हम घर में रहते बतिआई!
दाढ़ी मूंछ बना लेते हैं
सिर के बाल करें अगुआई।
बंद पड़े सैलून यहां के
रोता फिरता अकलू नाई।
डर के मारे दुबके हैं सब
नाई कहता, 'आओ भाई!
मास्क लगाकर मैं रहता हूं
तुम क्योंकर जाते खिसियाई?
मुंह ढको,फिर आ जाओ जी,
घर जाओ तुम बाल कटाई।
एक दिवस की बात नहीं यह
आगे बढ़ती और लड़ाई।
झाड़ू पोंछा,बर्तन बासन,
अपना कर,अपनी सुथराई।
वैक्सीन अगर कोई आए,
भागे कोरो ना हरजाई।'
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय अमीरुद्दीन जी,शुक्रिया एवं नमन।
जनाब मनन कुमार जी, आदाब। अच्छी ग़ज़ल हुई है, बधाई स्वीकार करें।
इस जानकारी के लिए धन्यवाद।
आभार और नमन आदरणीय समर जी।मैंने नहीं बनाया करोना को स्त्रीलिंग,बल्कि हिंदी व्याकरण के नियमानुसार वह स्त्रीलिंग ही है; आकारांत शब्द।जानने की बात है।
जनाब मनन कुमार सिंह जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
मतले में आपने 'करोना' को स्त्रीलिंग बना दिया:-)))
आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई,नमन।
आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
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