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एक ग़ज़ल मीठी सुनाकर बैठ जाऊँगा
मैं तुम्हारे दिल में आकर बैठ जाऊँगा
वक्त मुझको अपने आने का बताओ तो
राह में पलकें बिछाकर बैठ जाऊँगा
सामने सबके कहूँगा प्यार है तुझसे
ये न सोचो मैं लजाकर बैठ जाऊँगा
तुम हृदय के एक कोने में जगह दे दो
मैं वहीँ धूनी रमाकर बैठ जाऊँगा
हो अगर कोई गिला-शिकवा, बता देना
प्यार को दिल में छुपाकर बैठ जाऊँगा
“मौलिक एवं अप्रकाशित”
Comment
आदरणीय अमीरुद्दीन खा़न "अमीर " जी सादर नमस्कार
आपकी हौसलाअफजाई के लिए दिल से शुक्रिया।, आपका सुझाव लाजबाब है, अनुकरणीय है , धन्यवाद आपका, इसी तरह मार्गदर्शन करते रहें सादर
जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब।
ख़ूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने, दाद पेश करता हूँ।
वक्त मुझको अपने आने का बताओ तो
राह ह में पलकें बिछाकर बैठ जाऊँगा शेअ'र ख़ास है ।
हो अगर कोई गिला-शिकवा, बता देना
प्यार को दिल में छुपाकर बैठ जाऊँगा यहाँ पर अगर छुपाकर की जगह दबाकर हो तो मेरे नज़रिए बेहतर होगा। सादर।
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सादर नमस्कार- आपकी हौसलाअफजाई का दिल से शुक्रिया
आ. भाई बसंत जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
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