(221 1221 1221 122 )
क्या टूट चुका दिल है जो वो दिल न रहेगा ?
जज़्बात बयाँ करने के क़ाबिल न रहेगा ?
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तालीम अगर देना कोई छोड़ दे जो शख़्स
क्या आप की नज़रों में वो फ़ाज़िल* न रहेगा ?(*विद्वान )
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फ़रज़न्द के बारे में भला कौन ये सोचे
दुख-दर्द में इक रोज़ वो शामिल न रहेगा
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दो चार अगर झूठ पकड़ लें तो न सोचें
जो खू से है मजबूर वो बातिल* न रहेगा (*झूठा )
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आया है सज़ा काट के जो क़त्ल की उसके
धुल जाएँगे क्या पाप वो क़ातिल न रहेगा ?
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तोहफ़े हैं फ़िराक़-ओ-शब-ए-तन्हाई*, ग़म-ए-दिल (*विरह और तन्हाई की रात )
मत सोचिये कुछ इश्क़ में हासिल न रहेगा
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उसको तो सतायेंगे ही आफ़ात के तूफ़ां
आफ़ात के जो शख़्स मुकाबिल न रहेगा
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क्या आएगा वो दिन कभी जब मेरे वतन में
हर गाँव गली में कोई बेदिल* न रहेगा (*उदास )
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हर एक 'तुरंत ' आज पढ़ाये जो किसी को
तो कल को यक़ीनन कोई ज़ाहिल* न रहेगा (*अनपढ़ /गंवार )
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गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
भाई Salik Ganvir जी आदाब और उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी , आपकी हौसला आफजाई के लिए सादर आभार
आ. भाई गिरधारीलाल जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी ,
आपकी आनंदित करने वाली सराहना से मन तृप्त हुआ | सृजन सार्थक हुआ |सादर आभार एवम नमन |
समर सर ने जो बात बताई है इसे शुतुरुगुरबा ऐब कहते हैं | जब दो समान अर्थ के शब्द एक ही पंक्ति में हो तो यह ऐब होता है | जैसे अगर और जो दोनों समान अर्थी हैं इन्हे दोहराना गलत हुआ | दोनों में से एक ही प्रयोग होगा | यही ऐब ,मत और न एक पंक्ति में प्रयोग करने पर होगा | इससे बचना चाहिए |
आदरणीय गिरिधारी सिंह गहलोत जी ।बहुत ही उम्दा ग़ज़ल हुयी है। या ग़ज़ल में उर्दू के शब्दों के अर्थ साथ में होने से समझना मेरे लिए आसान रहा।हार्दिक बधाई आपको। आदरणीय समर सर ने अगर और जो के साथ होने पर जो प्रतिक्रिया की है। उस बारीकी को समझना चाहता हूँ कृपया मार्गदर्शन करें।सादर
आदरणीय Samar kabeer साहेब , आदाब , आपकी हौसला आफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया , आपका सुझाव सही है , यह भूल हो गई है |
जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।
'तालीम अगर देना कोई छोड़ दे जो शख़्स'
इस मिसरे में 'अगर' और ' जो' का इस्तेमाल उचित नहीं,मिसरा बदलने का प्रयास करें ।
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