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गीत-3 (लक्ष्मण धामी "मुसाफिर")

गीत

*****

उजाला  कर  दिया उसने
चलें उस ओर हम-तुम भी।।
*
तमस के गाँव में रह कर
सदी  बीती  हमारी  भी।
अभी तक ढो रहे हैं बस
वही  थोपी  उधारी  भी।।
*
नहीं  प्रयास  कर  पाये
कभी इससे निकलने का।
बढ़ाया हाथ उस ने जब
लगायें जोर हम तुम भी।।
**
न जाने कौन सी ग्लानी
मिटा उत्साह देती नित।
नहीं  साहस  जुटा पाता
सँभलने का हमारा चित।।
*
सफलता  है  नहीं आयी
भला क्यों पथ हमारे ही।
तनिक मष्तिष्क से सोचें
नहीं हैं ढोर हम- तुम भी।।
**
हमारे हित सदा बोला
हमारे हित लड़ा है वो।
भँवर, मझधार तूफाँ में
हमारे हित खड़ा है वो।।
**
अकेला क्यों  लड़े तम से
चलो अब साथ दें उसका।
मिला स्वर साथ उसके यूँ
मचाएँ शोर  हम - तुम भी।।
**
तरसते कल तलक आये
उजाला  जीत  बन देखो।
हमारे  पथ  चला  है  जो
उजाला रीत बनकर अब।।

**
नहीं  स्वीकार  तम  है  तो
विवश क्यों जी रहे इसको।
जलाया  दीप  है  उस ने
रचें नव भोर हम-तुम भी।।
***


मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on October 23, 2022 at 9:55am

आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, सुंदर गीत रचने के लिए बधाई स्वीकार करें। 

Comment by Mahendra Kumar on October 21, 2022 at 11:15am

बढ़िया गीत है आदरणीय लक्ष्मण धामी जी। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।

1. //वही  थोपी  उधारी  भी।।// वही थोपी उधारी ही।

2. //सँभलने का हमारा चित।।// सँभलने का हमारा चित्त।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 20, 2022 at 5:45am

आ. भाई दण्डपाणि जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति, स्नेह व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 20, 2022 at 5:43am

आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति, स्नेह व उत्साहवर्धन के लिए आभार। 

Comment by रवि भसीन 'शाहिद' on October 19, 2022 at 9:39am

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' भाई, सादर अभिवादन। बहुत सुन्दर और सकारात्मक भावों से सजा गीत है, इस पर आपको हार्दिक बधाई!

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