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"गुम्मन चाय वाला" - (लघु कथा) (20)

"चच्चा, लो पियो जे कड़क चाय, लेकिन मेरी कविता ज़रूर पढ़कर जाना" - गुम्मन ने बड़े उत्साह से कहा।
थोड़ी देर बाद वहीद चच्चा बोले- "ओय गुम्मन, तू तो बड़ी अच्छी कविता लिख लेता है, आज पता चली तेरी काबीलियत और तेरा 'असली' नाम।"
"हाँ चच्चा, छुटपन में एक बार ठण्ड के साथ तेज़ बुख़ार होने पे बिना किसी को बताये टेबल पे रखी रजाई की तह में छिपकर सो गया था। घरवाले घण्टों ढूंढते रहे। जब मिला तो "गुम" कहके चिढ़ाने, बुलाने लगे। इस चाय की दुकान पे सब "गुम्मन" कहने लगे। स्कूल छूटा तो असली नाम भी गुम हो गया।"
"देख, तेरा दिमाग़ तो बहुत तेज़ है ,बहुत क़ाबिल है तू । चल , फिर से मैं तेरा नाम स्कूल में लिखवाता हूं,पढाई फिर शुरू कर !"- उसकी पीठ थपथपाते वहीद चच्चा ने उसका हौसला बढ़ाया।
"चच्चा, क़ाबिल तो तुम भी थे। हैसियत के आगे क़ाबीलियत कोई मायने रखती है क्या जो पढ़ाई पे पैसा मिटाऊं !"- गुम्मन के ये शब्द शायर वहीद चच्चा को चुभ से गये।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 8, 2017 at 3:08am
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देने एवं प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया मोहतरम जनाब ओम प्रकाश क्षत्रिय प्रकाश जी व आदरणीय कान्ता राय जी।
Comment by kanta roy on October 22, 2015 at 6:41am
बेहतरीन लेखन हुआ है आपका आदरणीय शेख शहज़ाद जी । बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Omprakash Kshatriya on October 21, 2015 at 8:13pm

Sheikh Shahzad Usmani जी हार्दिक बधाई इस लघुकथा के लिए. बहुत ही सुन्दर बनी है. सन्देश चाहे जैसा भी हो. लघुकथा अच्छा कटाक्ष कर रही है.

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 21, 2015 at 6:13pm
मेरी रचना पर उपस्थित हो कर प्रोत्साहक टिप्पणियाँ प्रेषित करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय Tej Veer Singh जी, आदरणीया Rajesh Kumari जी, हमारी नयी होनहार रचनाकार साथी सदस्या मोहतरमा Rahila साहिबा।
Comment by Rahila on October 21, 2015 at 3:53pm
आद. उस्मानी जी !बहुत सुन्दर रचना लगी ।बहुत बधाई आपको ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 19, 2015 at 10:06pm

बहुत  बढ़िया तंज ..हेसियत के आगे पढ़ाई क्या ?

बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर लघु कथा के लिए |

Comment by TEJ VEER SINGH on October 19, 2015 at 9:31pm

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी!बहुत प्रेरक और शानदार लघुकथा!

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