For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'ग़ालिब' की ज़मीन में ग़ज़ल नम्बर 2'

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फेलुन

लोग हैरान थे,रिश्ता सर-ए-महफ़िल बाँधा

उसने जब अपनी रग-ए-जाँ से मेरा दिल बाँधा

हर क़दम राह मलाइक ने दिखाई मुझ को

मैंने जब अज़्म-ए-सफ़र जानिब-ए-मंज़िल बाँधा

जितने हमदर्द थे रोने लगे सुनकर देखो

अपने अशआर में जब मैंने ग़म-ए-दिल बाँधा

जल गये जितने सितारे थे फ़लक पर यारो

अपनी ज़ुल्फ़ों में जब उसने मह-ए-कामिल बाँधा

शुक्र तेरा करें किस मुंह से बता ऐ यारब

तूने चाहत की रसन से हमें शामिल बाँधा

तुझ पे क़ुर्बान मुसव्विर तेरे फ़न पर क़ुरबाँ

तूने मंज़र मेरे मिट जाने का तिल-तिल बाँधा

कर्बला वालों की तारीख़ "समर" याद आई

उसने जब तिश्ना लबों को लब-ए-साहिल बाँधा

-----

मलाइक--फ़रिश्ते

फ़लक--आकाश

मह-ए-कामिल--पूरा चाँद

रसन--रस्सी

मुसव्विर--चित्रकार

तिश्ना लबों--प्यासों

लब-ए-साहिल--किनारे

'समर कबीर'

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1103

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on July 6, 2018 at 2:30pm

जनाब लक्ष्मण धामी साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 6, 2018 at 12:21pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । बेहतरीन गजल के लिए हार्दिक बधाई ।

Comment by Samar kabeer on July 6, 2018 at 11:46am

जनाब राज़ नवादवी साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by राज़ नवादवी on July 6, 2018 at 11:27am

आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब! उस्ताद की ग़ज़ल उस्तादों जैसी, बहुत ख़ूब जनाबे आली. दिली मुबारकबाद. 

Comment by Samar kabeer on July 6, 2018 at 10:57am

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया ।

Comment by Gurpreet Singh jammu on July 5, 2018 at 9:03pm

जी सर समझ गया ...बहुत बहुत शुक्रिया आपका 

Comment by Naveen Mani Tripathi on July 5, 2018 at 8:32pm

हर क़दम राह मलाइक ने दिखाई मुझ को

मैंने जब अज़्म-ए-सफ़र जानिब-ए-मंज़िल बाँधा

आ0 कबीर सर बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई । आपको हार्दिक बधाई । हर शेर बेमिसाल हैं ।

सादर नमन ।

Comment by Samar kabeer on July 5, 2018 at 6:04pm

जनाब गुरप्रीत सिंह जी आदाब,बहुत दिन बाद आपको मंच पर सक्रिय देख कर प्रसन्नता हुई,कृपया अपनी सक्रियत बनाये रखें ।

'देखो' शब्द के कई अर्थ होते हैं,एक तो ये कल्मए तंबीह है, देखना,होशियार रहो, ख़बरदार रहो, यहाँ इसका अर्थ देखने से भी है और इसमें तंबीह भी है कि शाइर कहता है कि मेरे अशआर जब भी लोग सुनते हैं तो देखो इनमें जो हमदर्द दिल वाले होते हैं वो इस तरह रोने लगते हैं,जैसा कि तुम लोगों को रोते हुए देख रहे हो, इसलिये इस शैर में "देखो" शब्द वज़्न पूरा करने के लिए नहीं बल्कि उसके सहीह अर्थ में लिया गया है,उम्मीद है आप समझ गए होंगे?

ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

Comment by Gurpreet Singh jammu on July 5, 2018 at 3:13pm

आदरणीय समर सर जी , आदाब। हमेशा की तरह बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही आपने। सभी अशआर बाकमाल हुए हैं , ये शेर तो मेरे मन में घर कर गया है , बार बार इसे अपने मन में दोहरा कर लुत्फ़ ले रहा हूँ

तुझ पे क़ुर्बान मुसव्विर तेरे फ़न पर क़ुरबाँ
तूने मंज़र मेरे मिट जाने का तिल-तिल बाँधा

एक जिज्ञासा है सर जी,, जैसे इस शेर में

जितने हमदर्द थे रोने लगे सुनकर देखो
अपने अशआर में जब मैंने ग़म-ए-दिल बाँधा

जैसे इस शेर के ऊला के अंत में "देखो" शब्द लिया गया है , और भी कई शायरों के अशआर में इस तरकीब से "देखो" लिखा मैंने देखाहै। ऐसे शेर पढ़कर मुझे जाने क्यों लगता है की इस "देखो" की जगह कोई और सार्थक शब्द लिया जाता तो और बेहतर रहता। जैसे ये अरकान पूरे करने के लिए लिखा गया हो और इससे बचना चाहिए था। आपकी इस बारे में क्या राय है सर जी।

Comment by Samar kabeer on May 29, 2018 at 10:36am

जनाब डॉ.छोटेलाल सिंह जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक स्वागत आपका और आपकी इस प्रेरक रचना का आदरणीय सुशील सरना जी। बहुत दिनों बाद आप गोष्ठी में…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"शुक्रिया आदरणीय तेजवीर सिंह जी। रचना पर कोई टिप्पणी नहीं की। मार्गदर्शन प्रदान कीजिएगा न।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"सीख ...... "पापा ! फिर क्या हुआ" ।  सुशील ने रात को सोने से पहले पापा  की…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आभार आदरणीय तेजवीर जी।"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।बेहतर शीर्षक के बारे में मैं भी सोचता हूं। हां,पुर्जा लिखते हैं।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख़ शहज़ाद साहब जी।"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। चेताती हुई बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। लगता है कि इस बार तात्कालिक…"
Saturday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
" लापरवाही ' आपने कैसी रिपोर्ट निकाली है?डॉक्टर बहुत नाराज हैं।'  ' क्या…"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116
"आदाब। उम्दा विषय, कथानक व कथ्य पर उम्दा रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब। बस आरंभ…"
Friday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service