For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'ग़ालिब' की ज़मीन में ग़ज़ल नम्बर 2'

फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फेलुन

लोग हैरान थे,रिश्ता सर-ए-महफ़िल बाँधा

उसने जब अपनी रग-ए-जाँ से मेरा दिल बाँधा

हर क़दम राह मलाइक ने दिखाई मुझ को

मैंने जब अज़्म-ए-सफ़र जानिब-ए-मंज़िल बाँधा

जितने हमदर्द थे रोने लगे सुनकर देखो

अपने अशआर में जब मैंने ग़म-ए-दिल बाँधा

जल गये जितने सितारे थे फ़लक पर यारो

अपनी ज़ुल्फ़ों में जब उसने मह-ए-कामिल बाँधा

शुक्र तेरा करें किस मुंह से बता ऐ यारब

तूने चाहत की रसन से हमें शामिल बाँधा

तुझ पे क़ुर्बान मुसव्विर तेरे फ़न पर क़ुरबाँ

तूने मंज़र मेरे मिट जाने का तिल-तिल बाँधा

कर्बला वालों की तारीख़ "समर" याद आई

उसने जब तिश्ना लबों को लब-ए-साहिल बाँधा

-----

मलाइक--फ़रिश्ते

फ़लक--आकाश

मह-ए-कामिल--पूरा चाँद

रसन--रस्सी

मुसव्विर--चित्रकार

तिश्ना लबों--प्यासों

लब-ए-साहिल--किनारे

'समर कबीर'

मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1156

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 28, 2018 at 9:53am

वाह वाह लाजबाब गजल हुई है, एक से बढ़कर एक शेर, बहु बहुत बधाई आपको 

Comment by नाथ सोनांचली on March 28, 2018 at 4:03am

आद0 आली जनाब समर साहब सादर प्रणाम। बहुत बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने।

जल गये जितने सितारे थे फ़लक पर यारो

अपनी ज़ुल्फ़ों में जब उसने मह-ए-कामिल बाँधा

वाह वाह,

जितने हमदर्द थे रोने लगे सुनकर देखो

अपने अशआर में जब मैंने ग़म-ए-दिल बाँधा

क्या कहने ,

कर्बला वालों की तारीख़ "समर" याद आई

उसने जब तिश्ना लबों को लब-ए-साहिल बाँधा

बाकमाल।

मतले से लेकर मकते तक सभी शैर उम्दा। शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद कुबूल पेश करता हूँ।

Comment by Harash Mahajan on March 27, 2018 at 7:55pm

आदरणीय समर जी आदाब । बहुत ही बेहतरीन मतला सर।

...लोग हैराँ थे

...रग ए जाँ.....कितना खूबसूरत गहरा और दिलकश ।

हर शेर पर रुकने को मजबूर कर दिया आपने । 

"जल गए सितारे.....मह-ए-कामिल बाँधा"....बार बार पढ़ने का मन होता है ।

आपकी कलम को सलाम सर ।

सर उर्दू के अरकान लिखे हैं तो वक़्त ज़ियादा लगता है ज़ुबाँ पर आने में ।

आसानी के लिए हम 2122 2122 2122 22 से गुज़ार कर लेते हैं ।

सर वाह वाह के साथ अभी आपकी इस ग़ज़ल के साथ सफर पे हूँ ।

सादर ।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 27, 2018 at 6:58pm

आ, समर सर,

वाह वाह वाह और वाह,

क्या खूब ग़ज़ल हुई है,, बहुत बहुत बधाई

आप की शान में इतना ही बस उस्ताद समर

आपने शेर जो बाँधा बड़ा मुश्किल बाँधा

सादर

Comment by Ajay Tiwari on March 27, 2018 at 4:15pm

आदरणीय समर साहब, बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है. शेर सारे अच्छे है मगर  मतला और मक्ता तो लाजबाब है. हार्दिक बधाई .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service