For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

धूप का विस्तार लगाकर सो गए - सलीम रज़ा रीवा

2122 2122 212

धूप का विस्तार लगाकर सो गए

छांव सिरहाने दबाकर सो गए

oo

ज़िंदगी से थक-थका कर सो गए

वो चराग़--जाँ बुझा कर सो गए

oo

गुफ़्तगू की दिल मे ख़्वाहिश थी मगर

वो मेरे ख़्वाबों में आकर  सो गए

oo

तंग थी चादर तो हमने यूँ किया

पांव सीने से लगाकर सो गए

oo

उनकी नींदों पर निछावर मेरे ख़ाब

जो ज़माने को जगाकर सो गए

oo

बे-कसी में और क्या करते 'रज़ा

ख़ुद को ही समझा-बुझा कर सो गए
________________________
मौलिक व अप्रकाशित

बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़

Views: 995

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SALIM RAZA REWA on March 19, 2018 at 9:48pm
आदरणीय बसंत कुमार जी,
ग़ज़ल पर आपकी शिरक़त के लिए शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on March 19, 2018 at 9:46pm
जनाब तस्दीक साहब,
ग़ज़ल पर आपकी शिरक़त और मशविरे के लिए शुक्रिया,
Comment by SALIM RAZA REWA on March 19, 2018 at 9:44pm
आ. नीलेश भाई,
आप अपने विद्यार्थियों को सिखाने के लिए दूसरे की ग़ज़ल का इंतख़ाब करें...
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 19, 2018 at 8:44pm

आ. सलीम साहब,
आप क्या चाहते हैं   या क्या नहीं चाहते  यह न मेरे लिए मायने रखता है न मंच के लिए...
जो बात मायने रखती    है वो यह है कि नये सीखने वाले इस मंच से लाभान्वित हों इसीलिए आपस में एक दूसरे की रचनाओं की समीक्षा करने की व्यवस्था है ...
आप को आपका लिखा सही लगता है तो उससे भी   फर्क नहीं पड़ता ... लेकिन कोई उभरता हुआ शाइर गलत न सीख ले इस मंच से इसका ध्यान रखना मेरा कर्तव्य भी है और अधिकार भी ...
बाकी रचना आपकी है ..जैसी मर्ज़ी वैसी कहें ...

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 19, 2018 at 6:43pm

जनाब सलीम रज़ा साहिब ,बहुत ही मुरस्सा औऱ उम्दा ग़ज़ल हुई है ।मुबारक बाद क़ुबूल फरमाएं। मतले में विस्तार को बिस्तर  कर लीजिये । शेर 4 और 7 में तकाबुले  रदीफैंन की तकरार हो रही है ,मुनासिब समझें तो उला मिसरा यूँ कर सकते हैं । "मुश्किलों से हम लड़े ता ज़िन्दगी "। "दीप यादों के रहे रोशन फ़क़त"  । ---सादर

 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 19, 2018 at 1:09pm

बहुत बढ़िया गजल, वाह वाह, बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by SALIM RAZA REWA on March 19, 2018 at 11:05am
आदरणीय नीलेश साहिब,
ग़ज़ल पर आपकी शिरक़त और मशविरे के लिए शुक्रिया,
टाइपिंग सुधार लिया जाएगा,,
क़ाफ़िया आकर ' है और यह पूर्णतः सही व दोषमुक्त है,
..... नोट
हम इस बारे में कोई बहस नहीं चाहते...
धन्यवाद......
Comment by SALIM RAZA REWA on March 19, 2018 at 11:00am
जनाब शेख उस्मानी साहिब,
आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया,
Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 19, 2018 at 8:17am

आ. सलीम साहब 
.
धूप का विस्तार लगाकर सो गए ... बिस्तर की जगह विस्तार टाइप हो गया है जिसे ठीक कर लें ..
यहाँ मतले में लगाकर और दबाकर योजित काफ़िये हैं जिनके मूल शब्द लग और दब हैं...जिन में राइम नहीं है  जिसके चलते दोष उत्पन्न हो रहा है..
शेष ग़ज़ल के लिए बधाई 
सादर 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 19, 2018 at 6:04am

कड़वे सच बयां करते अशआर के साथ बेहतरीन ग़ज़ल के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब सलीम रज़ा ' रीवा' साहिब।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
10 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
22 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service