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ग़ज़ल...तू खुश्बू है चन्दन है-बृजेश कुमार 'ब्रज'

22 22 22 2
खन खन करता कंगन है
साँसों में भी कम्पन है

मैं पत्थर हूँ राहों का
तू खुश्बू है चन्दन है

आहट है किन कदमों की
उर में कैसा स्पंदन है

आँखों ने क्या कह डाला
आकुल ये मन वंदन है

मन मन्दिर में आ जाओ
स्वागत है अभिनन्दन है
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 18, 2018 at 5:56pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी स्वागत संग आभार..

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 18, 2018 at 5:55pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय तिवारी जी

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 18, 2018 at 5:54pm

तहेदिल से शुक्रिया आदरणीय आरिफ जी..

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 18, 2018 at 5:54pm

आदरणीय नीलेश जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार..सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 18, 2018 at 2:25pm

आ. भाई ब्रजेश जी, सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by Ajay Tiwari on March 18, 2018 at 11:25am

आदरणीय बृजेश जी, एक और अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई. 

Comment by Mohammed Arif on March 18, 2018 at 10:55am

आदरणीय बृजेश कुमार जी आदाब,

                                     बहुत उम्दा ग़ज़ल । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें । 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 17, 2018 at 10:45pm

आ.बृजेश कुमार 'ब्रज' जी 
अच्छी ग़ज़ल हुई है
बधाई

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 17, 2018 at 9:01pm

शुक्रिया आदरणीय समर जी..."अच्छी ग़ज़ल हुई" आपके ये शब्द बहुत मायने रखते हैं..बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by Samar kabeer on March 17, 2018 at 6:29pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' साहिब आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई स्वीकार करें ।

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