For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल...न जाने कैसे गुजरेगी क़यामत रात भारी है-बृजेश कुमार 'ब्रज'

1222 1222 1222 1222
अभी ये आँखें बोझिल है निहाँ कुछ बेक़रारी है
न जाने कैसे गुजरेगी क़यामत रात भारी है

सितारो क्यों परेशां हो अगर है चाँद पोशीदा
तुम्हारी जाँ-फ़िशानी से उदासी हर सू तारी है

चरागों सा जले फिर भी अँधेरा कम नहीं होता
धुआँ बनके बिखर जाएं यही किस्मत हमारी है

ये अक्सर नाक पर लेकर अना जो घूमते हो तुम
कहीं से मांग कर लाये हो या सच में तुम्हारी है 

गुजारी ज़िन्दगी कैसे बताएं किस तरह अय 'ब्रज'
हमारी मुश्किलों से ही अभी तक जंग जारी है

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 762

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 22, 2018 at 6:05pm

बिलकुल आदरणीय सुरेन्द्र जी..बहुत बहुत आभार

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 22, 2018 at 6:04pm

ज़नाब तस्दीक साहब ग़ज़ल पे शिरक़त के लिए आभार..चौथे शेर के सानी को यूँ करता हूँ

"कहीं से मांग कर लाये हो या सच में तुम्हारी है " बताइयेगा।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 22, 2018 at 6:01pm

शुक्रिया आदरणीय रामबली गुप्ता जी..

Comment by नाथ सोनांचली on February 22, 2018 at 2:18pm
आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल पर बढिया कोशिस।हार्दिक बधाई आपको
शेष गुणीजनों की बातों का संज्ञान लीजियेगा। सादर
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 22, 2018 at 1:24pm

जनाब ब्रजेश साहिब ,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।  मुहतर्मा राजेश साहिबा और मुहतरम जनाब समर साहिब के मश्वरे पर ध्यान दें । शेर 4 का सानी मिसरा यूँ करके देखिए "मियां ये मांग कर लाये कहीं से या तुम्हारी है "।

Comment by रामबली गुप्ता on February 22, 2018 at 11:59am

ग़ज़ल पर बढियाँ प्रयास हुआ है भाई बृजेश कुमार जी। हार्दिक बधाई स्वीकारें।सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 21, 2018 at 10:18pm

थोड़ा बहुत समझ रहा हूँ आदरणीय समर कबीर जी..कोशिश करता हूँ कुछ बदलाव कर सकूँ।तहेदिल से शुक्रिया आपका..

Comment by Samar kabeer on February 21, 2018 at 4:03pm

जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज'साहिब आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

बहना राजेश कुमारी जी की बातों का संज्ञान लें ।

'मियाँ ये आपकी है या कहीं से ली उधारी है'

इस मिसरे में 'उधारी' क़ाफ़िया काम नहीं कर रहा है,इस मिसरे की नस्र(गद्ध)बनाकर पढ़ें तो जुमला यूँ होगा,'मियाँ ये आपकी है या कहीं से उधार ली है,उम्मीद है आप समझ रहे होंगे?

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 21, 2018 at 3:49pm

शुक्रिया आदरणीया 'चरागों सा जला' मुझे भी खटक रहा था..आपने बात साफ कर दी..आपका हार्दिक अभिनन्दन है..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 20, 2018 at 10:31pm

अच्छी ग़ज़ल कही है बहुत बहुत बधाई

अभी ये आँख बोझिल है निहाँ कुछ बेक़रारी है---अभी आँखें ये बोझिल हैं --कर  सकते हो  वरना लग रहा है एक ही आँख बोझिल है 
न जाने कैसे गुजरेगी क़यामत रात भारी है

चरागों सा जला फिर भी अँधेरा कम नहीं होता
धुआँ बनके बिखर जाएं यही किस्मत हमारी है---उला में जला सानी में जाएँ व् हमारी ---शुतुर्गुबा दोष आ गया 

चरागो से जले फिर भी --कर लीजिये --और कोई आप्शन नहीं है 

ये अक्सर नाक पर लेकर अना जो घूमते हो तुम
मियां ये आपकी है या कहीं से ली उधारी है-----वाह्ह्ह

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
3 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
14 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
15 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service