For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल....मेरी आँखें और जयादा नम हो जातीं हैं-बृजेश कुमार 'ब्रज'

22     22     22    22    22    22    2
जब भी तेरी यादें जानां कम हो जाती हैं
मेरी आँखें और जियादा नम हो जाती हैं

दर्द संभालूँ आहें रोकूँ दिल को समझाऊँ
अश्क़ों की बरसातें बेमौसम हो जाती हैं

राह तुम्हारी तकते तकते आँखें पथराईं
साँसें भी चलते चलते मद्धम हो जाती हैं

रफ़्ता रफ़्ता रात चली और सवेरा आया
फिर ये होता है सोचें बरहम हो जाती हैं

उस दर पे दम तोड़ गई हर एक सदा मेरी
और सभी उम्मीदें 'ब्रज' बेदम हो जाती हैं
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 768

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 13, 2018 at 12:48pm

हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी...स्नेह बनाये रखें...

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 13, 2018 at 12:47pm

तहेदिल से शुक्रिया ज़नाब मिश्रा जी...

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 13, 2018 at 9:45am

आ. भाई ब्रजेश जी, सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by Neeraj Nishchal on February 13, 2018 at 9:40am

वाह वाह बहुत ही लाजवाब बृजेश कुमार जी

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 11, 2018 at 1:12pm

उचित है आदरणीय तस्दीक जी सुधार करता हूँ...सादर

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 11, 2018 at 9:18am

जनाब ब्रजेश साहिब , हैं का इस्तेमाल करके जाती है सही है जातीं नहीं। आपके मिसरे में लय बाधित हो रही है , और मिसरों से मिलकर पढ़ें ,पता चल जाएगा ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 10, 2018 at 10:40pm

आदरणीय तस्दीक जी आपकी सार्थक समीक्षा के लिए सादर धन्यवाद..चूँकि बहुवचन की बात हो रही है इसलिए जातीं हैं रखा..मैं अभी भी असमंजस में हूँ क्या ये सही नहीं है?ज्यादा को आपके बताये अनुसार सही करता हूँ।लेकिन चौथा शेर बे बह्र है ये समझ नही आ रहा है!!

रात चली 2112 को हम 222 ले सकते हैं न इस बह्र में??

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 10, 2018 at 8:58pm

जनाब ब्रजेश कुमार साहिब , ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है ,मुबारकबाद कुबूल फरमायें ।  शब्द जातीं को जाती और जयादा  को ज़ियादा करलें ।शेर4 उला बह्र में नहीं , यूँ कर सकते हैं "रफ्ता रफ्ता शब जाती और आता सवेरा है ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 10, 2018 at 11:51am

बहुत बहुत आभार आदरणीय विजय जी...सादर

Comment by vijay nikore on February 10, 2018 at 4:47am

बहुत अच्छे एहसासों का प्रयोग किया है। हार्दिक बधाई, आ० बृजेश जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत दोहे चित्र के मर्म को छू सके जानकर प्रसन्नता…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर,  प्रस्तुत दोहावली पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service