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ग़ज़ल - जानवर कितने समझदार मिले

बह्र- फाइलातुन मुफाइलुन फैलुन
2122 1212 22

शेर की खाल में सियार मिले।
जानवर कितने समझदार मिले।

मुझसे जो दूर दूर रहते थे,
जब पड़ा काम बार बार मिले।

जिनकी किस्मत में सिर्फ बीड़ी है,
उनके होठो पे कब सिग़ार मिले।

हर किसी की यही तमन्ना है,
देश में सबको रोजगार मिले।

कैसी हसरत है नौजवानों की,
उनको शादी मैं मँहगी कार मिले।

उसने टरका दिया हमें हर बार,
उससे दफ्तर में जितनी बार मिले।

अपनी किस्मत में खोट है साहब,
फूल चाहा तो हमको खार मिले।

नीबू जैसे हमें निचोड़ा है,
हमको ऐसे भी दोस्त यार मिले।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Ajay Tiwari on November 6, 2017 at 11:46am

आदरणीय राम अवध जी,

ग़ज़ल में आपने व्यंग और हास्य की बहुत अच्छी अभिव्यक्ति की है. हार्दिक शुभकामनाएं.

सादर 

Comment by Samar kabeer on November 5, 2017 at 9:18pm
जनाब राम अवध जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by SALIM RAZA REWA on November 5, 2017 at 4:37pm
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई.
Comment by Mohammed Arif on November 5, 2017 at 7:35am
शेर की खाल में सियार मिले।
जानवर कितने समझदार मिले बहुत बढ़िया तंज़ कसा है । आज की स्थिति तो यही है ।
शे'रत्रदर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए आदरणीय राम अवध जी ।

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