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सबसे बड़ी रदीफ़ में ग़ज़ल का प्रयास, सिर्फ रदीफ़ और क़ाफ़िया में पूरी ग़ज़ल - सलीम रज़ा रीवा

1222 1222 1222 1222
.....
वतन की बात  करनी हो तो मेरे पास आ जाओ .
अमन की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ 
.....
बहारों  से  नज़ारों  से  सितारों  से नहीं मतलब .
नयन की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ
....
गुलो गुलशन कली औ फूल शबनम मन को भाते है.
चमन की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ
.....
न तो शिकवा शिकायत रूठने की बात मत करना.
मिलन  की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ

…..

बिना  समझे  न  ढूंढो  ऐब  मेरी  शायरी  में तुम.

सुख़न की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ

.....
रज़ा' मुझको नहीं  भाती  ये ख़ामोशी ये मायूसी.
जतन की बात करनी हो तो मेरे पास आ जाओ

.....
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on October 20, 2017 at 10:51am
आप गलत मतलब क्यों निकाल रहे हो भाई,याद आ गया तो साझा कर लिया पटल पर ।
Comment by SALIM RAZA REWA on October 20, 2017 at 10:21am

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,
आपका आशीर्वाद पाकर दिल बाग़ बाग़ हो गया ,
आपकी मुहब्बत सलामत रहे आपकी हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 19, 2017 at 11:57pm

इस गहन प्रयास के लिए दिल से दाद कुबूल कीजिए आदरणीय सलीम रज़ा भाई. 

शुभेच्छाएँ 

Comment by SALIM RAZA REWA on October 19, 2017 at 10:37pm
जनाब समर साहब,
आप साबित क्या करना चाहते हैं.मैंने ये तो नहीं कहा कि मेरी पहली ग़ज़ल है,लेकिन शायद मेरे पदाइश के पहले कोई ग़ज़ल लीखी गई हो.मेरी हेडिंग फिर से पढें.. क्या मैंने दुनिया की इक लौती ग़ज़ल कहीं लिखा है क्या...
Comment by Samar kabeer on October 19, 2017 at 8:52pm
बड़ी रदीफ़ में चालीस साल पहले का मतला याद आ गया :-
"दवा क्या कर नहीं सकते हैं वो,लेकिन नहीं करते
दुआ क्या कर नहीं सकते हैं वो,लेकिन नहीं करते"
Comment by SALIM RAZA REWA on October 19, 2017 at 7:39pm
जनाब तस्दीक़ साहिब ,
आपकी मुहब्बत और मशवरे के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपकी नज़रे इनायत बानी रहे ,
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on October 19, 2017 at 6:06pm
जनाब सलीम अच्छा प्रयोग किया है आपने ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं । मतले के सानी मिसरे में अमन की जगह ज़मन सही लगे तो कर लें
Comment by SALIM RAZA REWA on October 19, 2017 at 4:16pm
जनाब शेख शहज़ाद उस्मानी साहिब.
आपकी महब्बत सलामत रहे बहुत बहुत शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on October 19, 2017 at 4:12pm
आली जनाब समर साहब,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया.अमन की जगह सुख़न कर रहे हैं,कहीं कुछ और हो तो ज़रूर याद दिलाएं.
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 19, 2017 at 3:59pm
वाह। एक शब्द के काफ़िये के साथ बड़ी रदीफ़ लेते हुए बढ़िया अशआर। तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब सलीम रज़ा रीवा साहब। दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।

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