For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल...कई शम्स उसने सँभाले हुये हैं

122 122 122 122
कई शम्स उसने सँभाले हुये हैं
वो जिसके करम से उजाले हुये हैं

चला जो सदा सत्य की लौ जलाये
उसी शख्स के पांव छाले हुये हैं

ये जिनकी तपिश से जले आशियाने
वो मुददे नहीं बस उछाले हुये हैं

कहीं दूध मेवा कहीं आदमी को
बमुश्किल मयस्सर निवाले हुये हैं

विसाले सनम के हसीं ख्वाब दिल से
कई साल पहले निकाले हुये हैं
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'

Views: 675

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 7, 2017 at 3:44pm
आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी रचना पटल पे आपका हार्दिक स्वागत है..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 7, 2017 at 3:43pm
आदरणीय समर कबीर जी आपकी उपस्थिति सदैव उत्साहवर्धक होती है..आपका हार्दिक अभिनन्दन वंदन..सादर
Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 7, 2017 at 9:52am

बहुत बढ़िया 

Comment by Samar kabeer on May 6, 2017 at 9:49pm
जनाब बृजेश कुमार'ब्रज'साहिब आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है ,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 5, 2017 at 11:47pm
सभी बड़ों से एक प्रार्थना है..बहुत छोटा हूँ मैं अभी हर मायने में कृपया आदरणीय जैसे भारी शब्द से सम्बोधन न दें..सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 5, 2017 at 9:18pm
आ अनुराग जी आपकी हौसलाफजाई के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन वंदन करता हूँ सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 5, 2017 at 9:10pm
आदरणीय गिरिराज जी आपकी उपस्थिति से अतिप्रसन्ता का अनुभव हुआ..आपकी और आदरणीय नीलेश जी की बात से सहमति व्यक्त करता हूँ और अच्छे से अच्छा करने की कोशिश करूँगा सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 5, 2017 at 8:58pm
आदरणीय डा.मिश्रा जी सुन्दर शब्दों में उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक अभिनन्दन वंदन करता हूँ सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 5, 2017 at 8:57pm
आ नीलेश जी रचना पटल पे आपकी उपाथिति सदैव उत्साहवर्धक होती है सादर आभार व्यक्त करता हूँ..जी आदरणीय आपके कथन से पूर्णतया इत्तफ़ाक़ रखता हूँ..तीसरा शेर अच्छा है लेकिन उसे और बेहतर किया जा सकता है..कोशिश कर रहा हूँ कुछ अच्छा कर सकूँ सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 5, 2017 at 8:53pm
आ. सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी मुक्त कंठ से रचना की सराहना के लिए आपका ह्र्दयतल से आभार..सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
3 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
4 hours ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
5 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
5 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
7 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
9 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
9 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
16 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
16 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service