For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सज़ा इश्क़ की बेवफ़ाई न दे (ग़ज़ल)

122 122 122 12

सज़ा इश्क़ की बेवफाई न दे
भले मौत दे पर जुदाई न दे

है मंज़ूर रहना हमें क़ैद में
वो आँखों से जबतक रिहाई न दे

ये इंसाफ़ कैसा है तेरा ख़ुदा
तू जाड़ा तो दे पर रजाई न दे

कहेगा जो सच तो कटेगी जुबां
छुपा बेगुनाही, सफाई न दे

मचा शोर कैसा शहर में, सदा
किसी को किसी की सुनाई न दे

बहुत दूर है मेरी मंज़िल अभी
सफ़र देख मेरा, बधाई न दे
===================

जयनित कुमार मेहता
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 820

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by TEJ VEER SINGH on January 29, 2016 at 1:28pm

हार्दिक बधाई आदरणीया जयनित  जी!बहुत खूबसूरत गज़ल!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 29, 2016 at 12:15pm
बहुत सुन्दर अशआर कहे हैं,
हार्दिक बधाई इस ग़ज़ल पर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 29, 2016 at 11:37am

बहुत खूब .....

Comment by Shyam Narain Verma on January 29, 2016 at 10:37am

बहुत सुन्दर ... सादर बधाई स्वीकारें

Comment by Ravi Shukla on January 29, 2016 at 10:34am

आदरणीय जयनित जी बहुत बढि़या ग़ज़ल कही है आपने दिली दाद कुबूल करें एक शेर पर ध्‍यान दिलाना चाहेंगे

मचा शोर कैसा शहर में, सदा इस मिसरे में ..... शहर में सदा  122 12   में बांधा है शहर का वज्‍न आपने 12 लिया है जबकि इसे शह्र  21 में लिया जाता है । हॉं ये बात सही है कि आम बोल चाल में शहर 12 ही बोला जा रहा है । दुष्‍यंत कुमार जी ने अपनी किताब की भूमिका में भी इस विषय पर चर्चा की थी कि शहर 12 के वज्न में क्‍यो स्‍वीकार नहीं किया जा सकता जबकि उनके कथना नुसार 

(मचा शोर कैसा नगर में सदा) श्‍ाहर को नगर कर के इस बहस को खत्‍म किया जा सकता है । खैर इस बहाने विद्वतजन की चर्चा से हमें और आपको और भी जानने और सीखने का मौका मिलेगा । एक कंकर फेंक दिया है हमने अब प्रतीक्षा है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service