For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

स्याह धब्बा

ढलते सूरज-से रिश्ते की बुझती लालिमा

सिकुड़ती सिमटती जा रही

अनकही बातों के अरमानों की

अप्राकृतिक अकुलाहट

अपने ही कानों में भयानक

दुर्घटना-सी

अमावस-सी अँधियारी कसकती रात

डरता है व्याकुल बेसुध मन

कि अब तुम नहीं हो पास

बहता है दुख

बेचैन बदनसीब रिश्ता ...

अब स्याह धब्बे-सा

--------

-- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 815

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on June 17, 2015 at 9:58am

आदरणीय सुशील जी, रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by vijay nikore on June 16, 2015 at 8:04pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय कृष्णा मिश्र जी।

Comment by विनय कुमार on June 16, 2015 at 2:23pm

बेहतरीन रचना हेतु बधाई स्वीकारें आदरणीय विजय निकोर जी ..

Comment by vijay nikore on June 16, 2015 at 1:23pm

रचना के भाव के अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय सुशील जी।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on June 16, 2015 at 10:40am

सुंदर काव्य जो भावनाओ को अंत:करण तक झकझोरती चली जाती है. दिली बधाई स्वीकारे. आ0 निकोर सर जी.

Comment by vijay nikore on June 16, 2015 at 7:51am

सराहना से मनोबल बढ़ाने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय विजय शंकर जी।

आपकी काव्यात्मक प्रतिक्रिया बहुत अच्छी लगी।

Comment by kanta roy on June 16, 2015 at 7:25am
बहुत ही शानदार रचना हुई है आपकी आदरणीय विजय निकोरे ॥

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on June 16, 2015 at 3:53am
श्रद्धेय, आपकी रचनाओं पर प्रतिक्रिया दूँ, मैं इस काबिल नहीं. प्रस्तुत रचना की अंतिम तीन पंक्तियों में क्या कुछ नहीं है, बार-बार डूबने को मन करता है भावनाओं की इस सरिता में. नमन.
Comment by Samar kabeer on June 15, 2015 at 2:36pm
जनाब विजय निकोरे जी,आदाब,आपकी कविता बहुत पसंद आई ,दिल को छू लिया इसने ,पंक्ति दर पंक्ति इस रचना पर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाऐं ।
Comment by Sushil Sarna on June 15, 2015 at 2:03pm

बेचैन बदनसीब रिश्ता ...
अब स्याह धब्बे-सा
वाह आदरणीय निकोर साहिब बहुत ही गहन भावों की प्रस्तुति पेश की आपने … हार्दिक बधाई सर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
21 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
yesterday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service