For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :-सभी कहते हैं अच्छा बोलता है

बह्र:- फ़ऊलुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन

सभी कहते हैं अच्छा बोलता है
जो हम बोलेंगे तोता बोलता है

हमारा काम क्या उन महफ़िलों में
जहाँ दौलत का नश्शा बोलता है

कोई लोरी सुनाओ,गीत गाओ
अधूरा एक सपना बोलता है

ज़रा महकी हुई ज़ुल्फों की ठंडक
कई रातों का जागा बोलता है

मैं सच्चाई की बातें कर रहा हूँ
समझते हैं दिवाना बोलता है

तिरी शक्ति है अपरम पार मौला
तिरे आगे तो गूंगा बोलता है

छुपाए से नहीं छुपती हक़ीक़त
ज़बाँ चुप हो तो चहरा बोलता है

बंधे हैं एकता की डोर से हम
गवाही में तिरंगा बोलता है

कोई महमान आने को है शायद
हमारी छत पे कौआ बोलता है

ग़ज़ल कहना नहीं है खेल कोई
सुना तुमने ,"समर" क्या बोलता है

"समर कबीर"
मौलिक/अप्रकाशित

Views: 1506

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Samar kabeer on April 4, 2015 at 11:02pm

जनाब निर्मल नदीम जी,आदाब,
"ग़ज़ल कहना नहीं है खेल कोई
सुना तुमने,"समर" क्या बोलता है"

नदीम जी,15 साल की उम्र से ग़ज़ल कह रहा हूँ,शाईरी मुझे विरसे में मिली है,10 मुस्तनद उस्तादों की गोद में पल कर बड़ा हुवा हूँ,शाईरी के पचास साला अदबी सफ़र में एक मिसरा भी बह्र से ख़ारिज नहीं कहा है |

आप कहते हैं मेरा ये मिसरा :-

"तिरी शक्ति है अपरम पार मौला"

बह्र से ख़ारिज है,जबकी ऐसा है नहीं,"शक्ति" शब्द उर्दू में चार हरफ़ी है,इस लिहाज़ से ये मिसरा बह्र से ख़ारिज नहीं है,मैने ये मिसरा जान बूझ कर हिन्दी शब्दों में लिखा,मैं चाहता तो इस मिसरे को उर्दू अलफ़ाज़ से भी सजा सकता था,अब रही बह्र के अरकान लिखने की बात,आपने लिखा है कि मैने बह्र ग़लत लिखी है,इस बह्र के अरकान फ़ऊलुन फ़ाईलातुन फ़ाईलातुन बिल्कुल सही है,इसे इस तरह भी लिख सकते हैं :-

"मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन",जैसा की आपने लिखा है,यह भी ठीक है,जनाब सौरभ पाँडे जी ने मेरी पिछली ग़ज़ल जो इसी बह्र में थी,इस तरफ़ हल्का सा इशारा मुझे दिया था,मुझे वहीं इस बात की वज़ाहत कर देना थी,आज ग़ज़ल का हर पाठक ग़ज़ल पढ़ने से पहले ही उसपर तनक़ीद का मन बना लेता है फिर ग़ज़ल पढ़ता है,और कोशिश करता है की अपने ज्ञान के मुताबिक़ उसमें कोई ऐब निकाल कर बताए,इस तरह वो ग़ज़ल से कोई फ़ैज़ हासिल नहीं कर पाता,ग़ज़ल उर्दू की सिन्फ़ है,इसे किसी भी भाषा में कहो क़दीम पैमाने पर ही रखना होगा,आपने मेरी ग़ज़ल में शिर्कत की,मेरी हौसला अफ़ज़ाई की इसके लिये मैं आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |

Comment by Samar kabeer on April 4, 2015 at 10:15pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी,आदाब,आप ग़ज़ल के पारखी हैं ,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ |
Comment by Samar kabeer on April 4, 2015 at 10:11pm
आली जनाब डा.विजय शंकर जी,आदाब,आप जैसे विद्वान की शिर्कत ग़ज़ल में हो गई,लिखना सार्थक हुवा,हौसला अफ़ज़ाई के लिये तहे दिल से शुक्रिया |
Comment by Neeraj Neer on April 4, 2015 at 6:18pm

वाह वाह जनाब मतले का शेर क्या गज़ब ढा रहा है ..... बहुत गहरे अर्थ लिए ..... सभी कहते हैं अच्छा बोलता है
जो हम बोलेंगे तोता बोलता है........ दिली दाद मेरी ओर से ॥ 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 4, 2015 at 5:52pm

छुपाए से नहीं छुपती हक़ीक़त
ज़बाँ चुप हो तो चहरा बोलता है--------वह वह कबीर साहेब , बेहतरीन .

Comment by umesh katara on April 4, 2015 at 2:10pm

वााहहहहहहहहहहह वाहहहह
बंधे हैं एकता की डोर से हम
गवाही में तिरंगा बोलता है

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 4, 2015 at 1:39pm

बंधे हैं एकता की डोर से हम
गवाही में तिरंगा बोलता है..बेहतरीन 

कोई महमान आने को है शायद
हमारी छत पे कौआ बोलता है... बहुत बढ़िया   आदरणीय समर जी इस अच्छी ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by Nirmal Nadeem on April 4, 2015 at 12:18pm

बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है जनाब क्या कहने वाः वाह वाह। बधाई स्वीकारें।

आपका ध्यान एक शेर पे चाहूंगा। आपने लिखा है

तिरी शक्ति है अपरम पार मौला
तिरे आगे तो गूंगा बोलता है

यहाँ शक्ति शब्द से मिसरा ख़ारिज हो रहा है क्योकि शक्ति का वज़न २ १ होता है जबकि आपने २२ पे लिया है। कुछ लोग इस तरह भी लिखते है लेकिन जहाँ तक मेरा मानना कि ग़ज़लों में अपभ्रंश शब्द नही इस्तेमाल करते। इससे ग़ज़ल की स्वाभाविकता नष्ट होती है। इसे इसप्रकार ले सकते है , अगर आपको अच्छा लगे

तेरी ताक़त है लामहदूद मौला
तेरे आगे तो गूंगा बोलता है।

आपने बहर ग़लत लिखी है ये यूँ होती है
मफ़ाईलुन मफ़ाईलुन फ़ऊलुन

बहुत बहुत बधाई। शुक्रिया।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 4, 2015 at 12:14pm

मैं सच्चाई की बातें कर रहा हूँ
समझते हैं दिवाना बोलता है

छुपाए से नहीं छुपती हक़ीक़त
ज़बाँ चुप हो तो चहरा बोलता है

कोई महमान आने को है शायद
हमारी छत पे कौआ बोलता है  --- आदरनीय समर भाई , बहुत लाजवाब ग़ज़ल कही है , दिली मुबारक बाद हरेक शे र के लिये !!

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 4, 2015 at 10:46am
मैं सच्चाई की बातें कर रहा हूँ
समझते हैं दिवाना बोलता है
तिरी शक्ति है अपरम पार मौला
तिरे आगे तो गूंगा बोलता है
छुपाए से नहीं छुपती हक़ीक़त
ज़बाँ चुप हो तो चहरा बोलता है
इतनी सरल भाषा में इतनी बड़ी बड़ी बातें बोल दी आपने।नमस्कार , बहुत खूब आदरणीय जनाब समर कबीर साहब , बहुत खूब , एक एक शेर बहुत कुछ बोलता है , बहुत बहुत बधाई , इस खूबसूरत प्रस्तुति पर , सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Wednesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
Sep 30
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service