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छाई रंगों की मधुर फुहार

रंगीली आई होली

सखी री आई होली

 

अंग सजन के रंग लगाऊँ

मन ही मन में खूब लजाऊँ

फगुनिया चलती बयार

सखी री आई होली

 

नेह में डूबी पवन बावरी

मन मंदिर में पी छवि सांवरी

नथुनिया की होठों से रार

सखी री आई होली

 

शाम सिंदूरी अति हर्षाये

अखियों से मदिरा छलकाए

चंदनियाँ करे मनुहार

सखी री आई होली

 

चम्पा चमेली गजरे में महके

दर्पण देख के मनवा लहके

बिंदिया चमके लिलार

सखी री आई होरी

 

मुख में दबाये पान का बीडा  

हर लेते वो  मेरी मन पीड़ा 

सखि बहियों के डालूँ हार

रंगीली आई होली 

मौलिक व अप्रकाशित 

कल्पना मिश्रा बाजपेई 

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Comment by Hari Prakash Dubey on February 28, 2015 at 9:42am

आदरणीया कल्पना मिश्रा बाजपेई जी,बहुत ही सुन्दर रचना है , बहुत- बहुत बधाई आपको ! सादर

// नथुनिया की होठों से रार//बिंदिया चमके लिलार इन आंचलिक पक्तियों ने इस रचना को और सुन्दर बना दिया है ! सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on February 28, 2015 at 9:04am

होली की शुभकामनाये! फगुवा का रंग चढ़ने लगा है...बधाई हो आदरणीया..!

Comment by kalpna mishra bajpai on February 27, 2015 at 7:17pm

आ0 maharshi tripathi जी आभार /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on February 27, 2015 at 7:17pm

आ0 rajesh kumari दी आभार आप का /सादर 

Comment by kalpna mishra bajpai on February 27, 2015 at 7:16pm

आ0 डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर आभार आप का /सादर 

Comment by maharshi tripathi on February 27, 2015 at 4:34pm

सुन्दर गीत की रचना हुई है आ.कल्पना जी ,,आपको हार्दिक बधाई |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 27, 2015 at 1:02pm

सुन्दर सामयिक गीत प्रिय कल्पना जी, होली की शुभकामनायें. आ० डॉ० गोपाल जी की बाते संज्ञान में लें | हार्दिक बधाई आपको.  

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 27, 2015 at 12:52pm

आ0  कल्पना जी

कुछ शाब्दिक अशुद्धियाँ सही कर लीजिये आपकी कविता  का सम्मोहन बढ़ जायेगा -

सखीरी  को   सखी री

बीढा     को   बीडा

पीढा    को    पीड़ा

परर्जाति गजरे में महके ----इसका आशय समझ में नहीं आया i     सुन्दर सामयिक रचना के लिए आपको बधाई  i  सादर i

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