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ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी

२१२२  २१२२ २१२

तुमने पुरखों की हवेली बेच दी

शान दुःख सुख की सहेली बेच दी

भूख दौलत की मिटाने के लिए

मौत को दुल्हन नवेली बेच दी

जिस्म के बाजार ऊंचे दाम थे

गाँव की राधा चमेली बेच दी

बस्ता बचपन और कागज़ छीनकर

तुमने बच्चों  की हथेली बेच दी

गाँव में दिखने लगा बाज़ार पन

प्यार सी वो गुड की भेली बेच दी

मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 23, 2014 at 2:55pm

आदरणीय गुमनाम भाई , बहुत खूब सूरत ग़ज़ल कही है , सभी अश आर बढिया हुये हैं , आपको दिली बधाइयाँ ।

आदरणीय शिज्जु भाई जी से सहमत हूँ -- दुख  लिखें तो मात्रा 2  लेते हैं और विसर्ग लगा के अगर आप दुःख लिखते हैं तो आपको मात्रा 21 लेना चाहिये । सुधार कर लीजियेगा !!

Comment by Sushil Sarna on December 23, 2014 at 1:21pm

बस्ता बचपन और कागज़ छीनकर
तुमने बच्चों की हथेली बेच दी
गाँव में दिखने लगा बाज़ार पन
प्यार सी वो गुड की भेली बेच दी

बेहद खूबसूरत भावों से सजी इस ग़ज़ल की पेशकश पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय।

Comment by khursheed khairadi on December 23, 2014 at 12:11pm

आदरणीय गुमनाम साहब .अनूठी ग़ज़ल है |सादर अभिनन्दन 

Comment by Anurag Singh "rishi" on December 23, 2014 at 10:23am
वाह लाजवाब गज़ल बहुक बहुत बधाइयॉं आपको आदरनीय
Comment by Shyam Narain Verma on December 23, 2014 at 10:09am

लाजवाब प्रस्तुति के लिये बहुत बहुत बधाई स्वीकारेँ 

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 23, 2014 at 8:59am
बस्ता बचपन और कागज़ छीनकर
तुमने बच्चों की हथेली बेच दी
क्या बात है आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी , बहुत लाजवाब, बधाई , सादर ।
Comment by somesh kumar on December 23, 2014 at 12:44am

गाँव में दिखने लगा बाज़ार पन

प्यार सी वो गुड की भेली बेच दी

वो खोती हुई भेली और राब आप ने याद दिला दिया ,बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 22, 2014 at 10:29pm
आदरणीय गुमनाम जी बेहतरीन ग़ज़ल, सभी अशआर बहुत उम्दा है आपको हार्दिक बधाई।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 22, 2014 at 9:54pm

आदरणीय गुमनाम जी हर शेर लाजवाब है हर शेर के लिये दाद हाज़िर है।

मगर एक जगह शंका है, जहाँ तक मैं जानता हूँ दुःख का वज्न 21 होता है और दुख का 2 । 

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