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देखा जब भी जाम मेरे हाथों रूठे

2222    2112  2 222

देखा जब भी जाम मेरे हाथों रूठे

कोई तो समझाए उन्हें दिल भी टूटे

हमसे कहते यार कभी भी मत पीना

खुद पीते मयख्वार  बड़े ही हैं झूठे

यारों अपने पास नशे की वो दौलत

चोरी करता चोर नहीं डाकू लूटे

माया ममता त्याग कठिन होता कितना

मय जब उतरे यार गले सब कुछ छूटे

हमको ये मालूम हुआ मैखाने आ

कहकर मय को शेख बुरा मस्ती लूटे

मैखाने से देख निकलना मयकश का

डगमग डगमग डिगे कदम सर भी फूटे 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on May 16, 2014 at 4:08pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय शिज्जू भाई जी ने उचित कहा है कभी के साथ भी का प्रयोग दोषपूर्ण माना जाता है, खैर इस ग़ज़ल पर बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 15, 2014 at 6:03pm

आदरणीय आशुतोष सर इस ग़ज़ल के लिये दिली दाद हाज़िर है


एक बार इसे 22 22 22 22 22 2 इस बह्र पर साध के देखें, यह मेरा विचार मात्र है।
कभी के साथ भी का प्रयोग ग़ज़ल में दोषपूर्ण माना जाता है।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 15, 2014 at 10:53am

यारों अपने पास नशे की वो दौलत

चोरी करता चोर नहीं डाकू लूटे

क्या खूब कहा आशुतोष भाई .. ढेरों बधाई .

कृपया ध्यान दे...

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