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माँ के सिवा - ग़ज़ल - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

** मेरे लिए आज मातृ दिवस और माँ की पुण्य तिथि का अद्भुत संयोग है l यह रचना माँ को समर्पित है l

जिंदगीभर  कौन देता  है खुशी माँ के सिवा
ले अॅधेरा  कौन  देता  रौशनी  माँ के सिवा

**
वह लहू  को कर  सुधा हमको हमेशा पोषती
कौन खुद को यूँ गला दे जिंदगी माँ के सिवा

**
बस रहे खुशहाल जग ये सोचकर भगवान भी
क्या बनाता और अच्छा इक नबी माँ के सिवा

**
दे के रिमझिम जिंदगी भर वो तपन हरती रहे
कौन अपनाता बता दे  तिश्नगी  माँ के सिवा

**
माँ न मिलती है दुबारा बेदखल घर से न कर
आ मिलेंगे फिर भले ही  यूँ सभी माँ के सिवा

**

2122  2122  2122  212

***

मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 23, 2014 at 11:02am

आदरणीय भाई सौरभ जी , आपसे सराहना मिली , बांछें खिल गयी . आपका मार्गदर्शन और प्रोत्साहन ही कुछ बेहतर लिखने के लिए प्रेरित करा है . स्नेह मिलता रहे यही कामना है .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 23, 2014 at 3:08am

अच्छे विचारों से पगी इस ग़ज़ल को पढ़वाने के लिए हार्दिक धन्यवाद, भाईजी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 16, 2014 at 11:47am

आदरणीय भाई अरुण जी उत्साहवर्धन के लिए आभार

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 16, 2014 at 11:42am

आदरणीय भाई , गिरिराज जी , उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्वाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 16, 2014 at 11:41am

आदरणीय आशुतोष भाई ग़ज़ल की प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद. संशय वाली पंक्ति को अब कोमा लगाने के बाद इस प्रकार देखें - कौन खुद को यूँ गला, दे जिंदगी माँ के सिवा . अब आप पंक्ति का भाव स्पष्ट तौर पर समझ सकते है. आभार .

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 16, 2014 at 10:39am

वाह भाई जी वाह इस ग़ज़ल पर हृदयतल से ढेरों ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें. जय हो


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 15, 2014 at 6:35pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , मातृ सत्ता को परिभाषित करती आपकी बेहतरीन गज़ल के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 15, 2014 at 4:28pm

वह लहू  को कर  सुधा हमको हमेशा पोषती
कौन खुद को यूँ गला दे जिंदगी माँ के सिवा  आदरणीय लक्षमण जी ..इस ग़ज़ल के माध्यम से माँ चरित्र दर्शन हुए ..माँ की महिमा मई तस्वीर को उजागर करती इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई ..कौन खुद की यूं गला दे जिन्दगी माँ के सिवा ...हो सकता है इस शेर को मैं समझ न पाया हूँ ..मुझे लगा को की जगह की ज्यादा उपयुक्त है ..हो सकता है मैं गलत भी हूँ ..सादर बधाई के साथ 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 15, 2014 at 10:46am

आदरणीय भुवन भाई , ग़ज़ल  की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by भुवन निस्तेज on May 14, 2014 at 9:15pm

आदरणीय माँ पर समर्पित इस गज़ल कि जितनी भी प्रशंशा की जाए कम है..

कृपया  बधाई स्वीकार करें...

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