For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"भई वाह, तुम्हारे हरे भरे केक्टस देख कर तो मज़ा ही आ गया."
"बहुत बहुत शुक्रिया."
"लेकिन पिछले महीने तक तो ये मुरझाए और बेजान से लग रहे थे"
"बेजान क्या, बस मरने ही वाले थे."
"तो क्या जादू कर दिया इन पर ?"
"घर के पिछवाड़े जो बड़ा सा पेड़ था वो पूरी धूप रोक लेता था,  उसे कटवाकर दफा किया, तब कहीं जाकर बेचारे केक्टस हरे हुए."

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 891

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 21, 2014 at 11:20am

रचना के मर्म तक पहुँचने के लिए दिल से शुक्रिया भाई  लक्ष्मण धामी जी.


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 21, 2014 at 11:20am

आपने बिलकुल सच कहा भाई अरुण श्रीबवास्तव जी, अपने हाथों अपनों बर्बादी की सटीक मिसाल दी है. रचना को मान देने के लिए हार्दिक आभार।

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 21, 2014 at 12:16am

ऐसा करना हमेशा से ही इन्सान की फितरत है, अपनी खोखली वाहवाही के लिए वास्तविकता को गवां देता है

बहुत सशक्त लघुकथा आदरणीय योगराज जी, हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by gumnaam pithoragarhi on February 20, 2014 at 9:54pm

वाह सर जी खूब एक बार मैने कहा ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,


खिज़ा से लोग इस कदर घबराने लगे
अपने आंगन में केक्टस उगाने लगे

 

,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 20, 2014 at 8:25pm
प्रतीक पूरी तरह अपनी बात कह रहे हैं। एक बेहद सफल लघुकथा। बधाई स्वीकार करें आदरणीय योगराज जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 20, 2014 at 6:04pm

आदरणीय योगराज भाई , प्रत्यक्ष दिखने वाले छोटे फायदे के लिये भविष्य के बड़े नुकसान से आँखे बन्द कर लेने की प्रवृत्ति हमेशा बड़े नुकसान का कारण बनती है ॥ सार्थक लघुकथा के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by Sarita Bhatia on February 20, 2014 at 5:43pm

गूढ़ ज्ञान के अर्थ लिए लघुकथा पर जीवन का सार 

Comment by annapurna bajpai on February 20, 2014 at 4:21pm

आदरणीय प्रभाकर जी गूढ़ अर्थों को समेटे हुए एक सशक्त लघु कथा , बहुत बधाई आपको । 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 20, 2014 at 1:15pm

आदरणीय भाई योगराज जी ,

यह लघुकथा है या हमारा जीवन चरित्र ?

इस लघुकथा बनाम जीवनचरित्र के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई .

Comment by Arun Sri on February 20, 2014 at 12:53pm

जैसे सूरज बेचकर मोमबत्तियाँ खरीद ली हों ! भीतर तक उतरती हुई लघुकथा !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on दिनेश कुमार's blog post ग़ज़ल -- दिनेश कुमार ( दस्तार ही जो सर पे सलामत नहीं रही )
"आदरणीय दिनेश कुमार जी बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल कीजिए। इस शेर पर…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय सुशील सरना जी बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई। गौरैया के झुंड का, सुंदर सा संसार…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post यह धर्म युद्ध है
"आदरणीय अमन सिन्हा जी, इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर"
7 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service