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भई चंदा निकल रहा होगा

जहाँ पर्वत पिघल रहा होगा
चरागे इश्क जल रहा होगा

परिंदे लौटने लगे घर को
चढ़ा सूरज जो ढल रहा होगा

बना है आदमी क्यूँ घोड़ा ये
कोई बच्चा मचल रहा होगा

गलितयों से जो दोस्ती कर ले
वो अपने हाथ मल रहा होगा

नयन हैं तिश्नगी भरे उसके
कोई तो ख्वाब पल रहा होगा

भरे है दर्द वो मगर न कहे
उसे अपना ही छल रहा होगा

छतों पे भीड़ औरतों की है
भई चंदा निकल रहा होगा

जले जो दीप आँधियों में भी
वो गर्दिशों को खल रहा होगा  

संदीप पटेल "दीप"

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by coontee mukerji on October 23, 2013 at 1:55pm

छतों पे भीड़ औरतों की है
भई चंदा निकल रहा होगा............वाह!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 23, 2013 at 9:18am

behtaareen इस ग़ज़ल का ये शेर तो मुझे बेहद पसंद आया छतों पे भीड़ औरतों की है 
भई चंदा निकल रहा होगा ..करवा चौथ के सुअसर पर बिलकुल सही ,,सादर 

Comment by vijay nikore on October 23, 2013 at 7:20am

बहुत सुन्दर ! बधाई।

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 22, 2013 at 10:01pm

बहुत सुंदर।  गज़ल की बधाई  संदीप भाई ।

Comment by ARVIND BHATNAGAR on October 22, 2013 at 9:23pm

जले जो दीप आँधियों में भी
वो गर्दिशों को खल रहा होगा
आदरणीय सन्दीप भाई ,बहुत उम्दा गज़ल कही !!! आपको हार्दिक बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 22, 2013 at 8:22pm

वाह वाह !!! सन्दीप भाई ,बहुत उम्दा गज़ल कही !!! आपको बहुत बहुत ब्धाई !!!!

छतों पे भीड़ औरतों की है
भई चंदा निकल रहा होगा -------- करवा चौथ के लिये अलग से बधाई !!!!!!

Comment by Amod Kumar Srivastava on October 22, 2013 at 7:33pm

सुंदर ... सार्थक रचना बधाई स्वीकार करें बंधुवर.... 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 22, 2013 at 6:50pm

आदरणीय केवल प्रसाद जी सादर प्रणाम

बहुत बहुत आभार आपका हौसलाफजाई और इस्लाह के लिए

स्नेह और मार्गदर्शन यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 22, 2013 at 6:49pm

आदरणीय चंद्रशेखर जी सादर

हौसलाफजाई के लिए तहे दिल से शुक्रिया आपका

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on October 22, 2013 at 6:49pm

aआदरणीय अभिनव सर जी सादर प्रणाम

बहुत बहुत आभार सराहना हेतु

स्नेह यूँ ही बनाये रखिये

कृपया ध्यान दे...

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