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शातिर (अतुकांत) ---गणेश जी बागी

बादलों से ढँका
नीला नही काला आकाश,
उचाईयों को मापता
उन्मुक्त पंछी,
चट्टान की ओट मे
फाँसने को आतुर बहेलिया,
आहा ! इधर ही आ रहा मूर्ख
फँसेगा, ज़रूर फँसेगा,
ओह ! बच गया,
शायद भांप गया । 

पुनः पेड़ की ओट मे,
वाह ! इधर ही आ रहा दुष्ट
आएगा इस बार
इस तीर की ज़द मे,
उफ्फ ! बच गया
बड़ा चालाक है
खैर, कब तक । 

हरे काले सफेद

रंगो से पुता
आवरण युक्त चेहरा
झाड़ियों के मध्य समाहित
दम साधे बहेलिया,
सनसनाता तीर
आ गिरा ज़मीन पर
शातिर कही का !
बादलों से मुक्त हुआ आकाश
और साथ मे
आवरण विहीन चेहरा भी |

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट =>लघुकथा : गिफ्ट

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Comment

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Comment by वीनस केसरी on October 17, 2013 at 10:56pm

मौलिक व अप्रकाशित नहीं भाई
मौलिक व अप्रत्याशित :)))))))))))))))))))))))))

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 17, 2013 at 10:36pm

बहेलिये के तीर  की ज़द में पंछी आये न आये पर आपकी कलम की ज़द में हम सब आ गये। बधाई  आ. गणेश भाई ।

Comment by वीनस केसरी on October 17, 2013 at 10:13pm

इस रूप में !!!
और ऐसे !!!
कमाल है !!!!!!!!!!!!!!!!

Comment by Sushil.Joshi on October 17, 2013 at 9:19pm

सुंदर एवं सारगर्भित रचना..... वाह आदरणीय गणेश भाई जी..... बहुत बहुत बधाई हो इस रचना के लिए.....

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 17, 2013 at 8:09pm

आदरणीय गनेश सर जी, सादर प्रणाम।  सर जी, वास्तव में शातिर शब्द बहेलिये की हतप्रभता को बयां करता है। क्योंकि पंछी तो शातिर हो ही नही सकता। उत्कृष्ट रचना हेतु तहेदिल से बहुत-बहुत बधार्इ स्वीकारें। सादर,


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 17, 2013 at 7:55pm

प्रिय बृजेश भाई, यह अतुकांत पहली नहीं है, इससे पहले भी ……… शायद वो रचनायें आप तक नहीं पहुँच सकी हैं । उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार । 

Comment by बृजेश नीरज on October 17, 2013 at 7:48pm

जय हो! जय हो! जय हो!

आपको अतुकांत में देखकर ही मन प्रसन्न हो गया! आपकी पहली अतुकांत पढ़ी है शायद मैंने!

लघुकथा की तरह ही कमाल किया है आपने! धारा प्रवाह!

आपको बधाई! बधाई! बधाई! ब ..........................


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 17, 2013 at 7:41pm

आदरणीय भंडारी भाई साहब, आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 17, 2013 at 7:39pm

आदरणीय अभिनव अरुण भाई जी, इस प्रयास को आपने मान दिया इसके लिए बहुत बहुत आभार, अतुकांत शैली में कविता लेखन मेरे लिए आसान नहीं होता किन्तु ओ बी ओ पर अन्य विद्वजनों को पढ़-पढ़ रचने का प्रयास कर रहा हूँ । 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 17, 2013 at 7:35pm

आपकी बधाई ह्रदय से स्वीकार है आदरणीया, बहुत बहुत आभार । 

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