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2122 1212  22

कुछ बहा पर बचा ज़रा भी है

जख़्म लेकिन, कही हरा भी है

जिनको बांटा उन्हें मिला भी पर

प्यार से दिल मेरा भरा भी है

ख़्वाब ताबीर तक कहाँ पहुंचा

थक के हारा, कभी मरा भी है

बात करता है वो महज़ सच की

सरफिरा है मगर खरा भी है   

जख़्म तुम सोच के ही दिखलाओ

हाथ निश्तर है ,उस्तरा भी है

ज़िन्दगी एक स्वाद क्या मानी

स्वाद मीठा है चरपरा भी है  

कोई कहता मुझे,मै खुश होता

तू कहीं से गज़ल सरा भी है

  मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 12, 2013 at 6:34pm

आदरणीय बड़े भाई , सराहना के लिये आपका अभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 12, 2013 at 6:33pm

वीर भाई , हौसला अफज़ाई के ;लिये आपका आभार !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 12, 2013 at 6:32pm

आदरणीय शिज्जू भाई , आपने गज़ल की सराहना की , मेरे लिये बहुत खुशी की बात है !! आपका आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 12, 2013 at 6:30pm

आदरणीय परवीन जी , हौसला अफजाई के लिये आपका दिली शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 12, 2013 at 6:29pm

आदरणीय अरविन्द भाई , सराहना के लिये आपका बहुत शुक्रिया !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 12, 2013 at 6:28pm

आदरणीया वन्दना जी , हौसला अफज़ाई के लिये आपका बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 12, 2013 at 6:27pm

आदरणीय ललित जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार !!

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 12, 2013 at 12:11pm

वाह आदरणीय बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर पसंद आये खासकर इन अशआरों हेतु विशेष तौर से बधाई स्वीकारें.

बात करता है वो महज़ सच की

सरफिरा है मगर खरा भी है   .. वाह

जख़्म तुम सोच के ही दिखलाओ

हाथ निश्तर है ,उस्तरा भी है... लाजवाब

ज़िन्दगी एक स्वाद क्या मानी

स्वाद मीठा है चरपरा भी है  .. बेहतरीन

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 12, 2013 at 12:11pm

अच्छी गजल, बधाई छोटे भाई।

Comment by Anil Chauhan '' Veer" on September 12, 2013 at 10:53am

बहुत खूब सर बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करें .... 

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